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प्रश्नों के उत्तर
गति करने की आवश्यकता नहीं है और न कोई साधु अपने चलने के स्थान से लेकर गन्तव्य स्थान तक ऐसी चेष्टा करता है। सदा साथ रखने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि रास्ते में कई जगह ... ऐसी परिस्थिति भी आ जाती है कि सारा मार्ग जीव-जन्तुओं से . . प्रावृत होता है, उन्हें बचाकर आगे बढ़ना कठिन होता है, ऐसे : समय के लिए रजोहरण का पास रखना आवश्यक है। रास्ते में ऐसा समय आएगा या नहीं या कव आएगा? इसका निश्चय नहीं :. होने से रजोहरण को सदा साथ रखने का विधान किया गया, ऐसा . लगता है । सूर्य के प्रकाश में सारी चीजें साफ-साफ परिलक्षित . होती हैं, अांखें सब कुछ देखती-परखती हैं परन्तु रास्ते में ग्राने .. वाले जीव-जन्तुओं को न अाँखें दूर कर सकती हैं और न सूर्य का प्रकाश ही उन्हें मार्ग से हटा सकता है, उन्हें बिना कष्ट एवं
पीड़ा पहुंचाए हटाने का काम रजोहरण ही कर सकता है। अतः ... उस का सदा साथ रखना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है और भूल
या भ्रान्ति वश न रखने पर एक उपवास का प्रायश्चित्त उचित. ही ... प्रतीत होता है। जैनेतर ग्रंथों में भी लिखा है कि शरीर में कष्ट :
होने पर भी सभी प्राणियों-जीव-जन्तुओं की संरक्षा हेतु रात-दिन
सदा देखकर चलना चाहिए । इसमें भी भूमि को देखकर चलने ... एवं जीवों की संरक्षा करने की बात कही है। दिन में देखकर . ....चलने की बात तो ठीक है; परन्तु रात में अन्धेरा होने से मार्ग ... .. दिखाई नहीं देता और अन्य साधु-सन्यासियों की तरह जैन साधु ... दीपक आदि काम में लाते नहीं। अतः जीवों की संरक्षा करने के लिए . .. * संरक्षणार्थ जन्तूनां, रात्रावहनि वा सदा,, ...... .. : शरीरस्वात्यये चैव, समीक्ष्य वसुधां चरेत् । ... .. ..
मनुस्मृति अ.. ६ श्लोक ६८.