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द्वादश अध्याय
अर्थ स्पष्ट ध्वनित होता है--मुख पर लगाने का वस्त्र, न कि हाथ में रखने का वस्त्र । अतः मुखवस्त्रिका का उद्देश्य मुह परः बांधे रखने पर ही पूरा होता है । . ..: प्रश्न-वोलते समय मुखवस्त्रिका थूक से गीली हो
जाती है, जिससे उस में समूच्छिम जीव पैदा हो जाते हैं ? .. अतः मुखवस्त्रिका सदा मुह पर बांधे नहीं रखनी चाहिए।
क्योंकि इससे हिंसा होती है। इस बात को क्या आप मानते हैं ? .. .
उत्तर--प्रश्न हमारे मानने, नहीं मानने का नहीं है। देखना यह है कि आगम भी इस वात को मानते हैं या नहीं । अर्थात् थूक से संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है या नहीं ? क्योंकि हम अपनी आंखों से उन जीवों को देख नहीं सकते, सिर्फ आगम . (सर्वज्ञ) की आंखों से ही उन्हें देख-जान सकते हैं। अत: इसके . लिए आगम के. विधान को देखना ज़रूरी है। - यह वात सत्य है कि मुखवस्त्रिका थूक से गीली हो जाती है, . परन्तु इस बात में सत्यता का अभाव है कि थूक से गीली हुई मुखवस्त्रिका में संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति होती है। क्योंकि
आगमों में कहीं भी ऐसा विधान नहीं मिलता । प्रज्ञापना सूत्र में संमूच्छिम जीवों की उत्पत्ति के. १४ स्थान माने हैं । वे इस प्रकार हैं१-विष्ठा, २-पेशाब,३-कफ, ४-नाक का मल, ५-वमन, ६-पित्त, ७-पोप, ७-रक्त, ६-वीर्य, १०-वीर्य के शुष्क पुद्गल, ११-शव, १६-स्त्री-पुरुष संयोग, १३-नालियों और १४-अशुचि के सभी स्थान । उक्त चवदह स्यानों में कहीं यह नहीं बताया गया है कि थूक से संमूच्छिम जोवों की उत्पत्ति होती है । यदि ऐसा होता तो : ...