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द्वादश अध्याय
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आहार लेने एवं करने में प्रयतना होती हो तो वे एक पात्र और उसके साथ एक झोली, पात्र पूजने का वस्त्र एवं पात्र ढकने के लिए एक वस्त्र भी रख सकते हैं । इस तरह वे अधिक से अधिक सात उपकरण रख सकते हैं । यदि इतने न भी रखें तो कम से कम दो उपकरण तो रखने ही पड़ते हैं- १ मुखवस्त्रिका और २ रजोहरण । आज के दिगम्बर साधु भी दो उपकरण तो रखते ही हैं । रजोहरण की जगह मोरपिच्छी और दूसरा कमंडल रखते हैं । वे भी नग्न रहते हैं, हाथ में ही भोजन करते हैं, फिर भी हम उन्हें जिनकल्पी नहीं कह सकते। क्योंकि जिनकल्प की चर्या को वे धारण नहीं करते और उस क्रिया को धारण कर सकने की शक्ति, साहस एवं योग्यता भी उनमें नहीं है । भले ही वे नग्न रहें फिर भी स्थविर कल्पी ही हैं ।
स्थविर कल्प - जो साधु शहर या गाँव में निवास करता है, उपदेश देता है, शिष्य बनाता है, ग्रपनी शरीर की भी देख-भाल करता है, दूसरे साधु की सेवा भी करता है और दूसरे से सेवा करवाता भी है, मर्यादित वस्त्र - पात्र रखता है, उसे स्थविर कल्पी साधु कहते हैं । स्थविरकल्पी मुनि के लिए १४ उपकरण बताए गए हैं ।: १ - मुख वस्त्रिका, २- रजोहरण, ३- प्रमार्जनिका, ४ - चोलपट्टा - धोती के स्थान में पहनने का वस्त्र - विशेष, ५ से ६- तीन चद्दर, ७–एक ग्रासन, से ११ - तीन पात्र, १२ - भोली, १३ – पात्र साफ करने का वस्त्र, १४ - पानी छानने या पात्र ढकने का वस्त्र । इसमें वस्त्र लञ्जा एवं शीत निवारण के लिए तथा पात्र अपने एवं अपने सहधर्मी साथियों के लिए आहार पानी लाने के लिए रखे जाते हैं । परन्तु मुखवस्त्रिका और रजोहरण ये दोनों उपकरण मात्र जीव-रक्षा के लिए ही रखे जाते हैं । ग्रहिंसा का परिपालन