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प्रश्नों के उत्तर करना साधु का मुख्य धर्म है। मुखवस्त्रिका एवं रजोहरण अहिंसा .. के प्रतीक हैं, अतः ये जैन साधु के चिन्ह भी हैं। और हम यह भी देख चुके हैं कि वस्त्र-पात्र का परित्याग करने वाले जिन-: कल्पी मुनि भी उक्त दो उपकरणों को रखते हैं । अतः यहां तक ... क्रमशः उक्त दोनों उपकरणों पर विस्तार से विचार करेंगे ।
मुखवस्त्रिका-मुखवस्त्रिका का उपयोग दो तरह से है एक जीवों की रक्षा के लिए और दूसरा चिन्ह रूप में । यह हम पहले वता ही चुके हैं कि जिनकल्पी मुनि भी-जो वस्त्र नहीं रखते, मुख- .. वस्त्रिका और. रजोहरण रखते हैं । अतः ये दोनों उपकरण जैन :मुनि की पहचान के साधन भी हैं । हम देखते हैं कि वैष्णव, शैव ग्रादि परंपरा के सन्यासियों के अपने अलग-अलग चिन्ह होते हैं, .. जिनसे उन्हें संप्रदाय रूप से पहचानने में सरलता रहती है। इसी तरह मुखवस्त्रिका और रजोहरण जैन मुनि के चिन्ह हैं। लोगों में भली-भांति पहचान हो सके इसलिए वाह्य चिन्ह का भी महत्त्व माना गया है ।*
... परन्तु मुखवस्त्रिका का महत्त्व केवल चिन्ह के रूप में नहीं, ... '.. बल्कि जीव-रक्षा की दृष्टि से है । चिन्ह तो और भी बताया जा ..
सकता था। अंतः जैनागमों में मुखवस्त्रिका का विधान जीव-रक्षा : की दृष्टि से किया गया है । यह तो हम देख चुके हैं कि साधु पर सूक्ष्म एवं स्थूल दोनों तरह के जीवों की रक्षा करने का उत्तरदायित्व हैं और इसी दायित्व को निभाने के लिए उसे खाने-पीने, .
immmmmm. * पच्चयत्थं च लोगस्स........ ..."."लोगो लिंग-पनोयणं ॥" .
___उत्तराध्ययन, २३/३२
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