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प्रश्नों
के उत्तर. ...
प्राणी जगत के सभी जीवों के सुख की कामना की है, सब से प्रेम जोड़ना चाहा है । अतः महावीर का विश्व-वन्धुत्त्व का संदेश जय जगत के नारे से अधिक उदार एवं व्यापक है । परन्तु आज 'खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु मे, मित्ती मे सच-भूएसु, वेरं मज्झं न केणई' के पाठ को जीवन में साकार रूप देने की महती. आवश्यकता है । इसे आचरण में उतारकर जैन विश्व के सामने । एक विशिष्ट आदर्श उपस्थित कर सकते हैं। ..... .
प्रश्न-मुखवस्त्रिका जीव-रक्षा के लिए लगाई जाती है, इसके पीछे कोई शास्त्रीय आधार भी है या केवलं तर्क के बल पर ही ऐसा माना या किया जाता है ? ... उत्तर--यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि आगमों में मुखवस्त्रिका रखने का विधान है और उसका मूल उद्देश्य जीव. रक्षा ही है । क्योंकि खुले मुह बोली जाने वाली भाषा को सावध
भाषा कहा गया है । भगवती सूत्र में गौतम स्वामी भगवान महा. वीर से प्रश्न करते हैं- .. ...
भगवन् ! शकेन्द्र सावद्य (हिंसा या पाप युक्त) भाषा बोलते . . हैं या निरवद्य (हिंसा या पाप रहित) ?
. भगवान गौतम ! देवेन्द्र दोनों तरह की भाषा बोलते हैं। .. गौतम-भगवन् ! एक व्यक्ति सावध और निरवद्य दोनों तरह.. - की भाषा कैसे वोल सकता है ? . .
. भगवान गौतम ! जब देवेन्द्र उत्तरासन से मुख ढक कर : बोलते हैं, तब वे निरवद्य भाषा बोलते हैं और जब मुख पर वस्त्र लगाए विना बोलते हैं तब वे सावध भाषा बोलते हैं ।* भाषा का. . * भगवती सूत्र शतक १६,उ. २, सूत्र ५६८