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द्वादश अध्याय
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आदेश नहीं है, जिससे जनता को प्रात्मा को ठेस पहुंचती हो । अस्तु, मल-मूत्र का त्याग करते समय भी वह इस बात का पूरा ध्यान रखता है कि जहां वह मल-मूत्र का त्याग कर रहा है वहां से कोई गुज़रे नहीं, देखे नहीं, जिस से किसी के मन में गुधा या घृणा पैदा न हो । क्षेत्र से लोगों के आने-जाने के मार्ग में, चौराहे पर मल-मूत्र का त्याग न करे। काल से-जहां. उसे मल-मूत्र का त्याग करना है, उस स्थान को दिन में भली-भांति देख लेवे । भाव से-उपयोग एवं यतना पूर्वक मल-मूत्रादि का त्याग करे,त्याग करके आते ही *इरियावही का प्रतिक्रमण करे।
तीन गुप्ति-गुप्ति का अर्थ गोपन करना होता है। मन, वचन और शरीर के योग को प्रवृत्ति से रोकने का नाम गुप्ति है । वह तीन प्रकार को कही गई है-१ मन गुप्ति, २ वचन गुप्ति
और ३ काय गुप्ति । अप्रशस्त, अशुभ, कुत्सित संकल्प-विकल्प में गतिमान मन को रोकना मनोगुप्ति है । असत्य, कर्कश, कठोर एवं अहितकारी या सावधं-पाप युक्त वाणी को नहीं बोलना या इस तरह की भापा निकल रही हो तो उसका निरोध करना वचन गुप्ति है । शरीर को अशुभ प्रबृंत्तियों एवं सावध व्यापारों से निवृत्त करना काय गुप्ति है।
- उपकरण-यह हम पीछे बता चुके हैं कि संयम-साधना के लिए साधु को उपकरण रखने होते हैं । विना उपकरण रखे वह साधना मार्ग में प्रवृत्त नहीं हो सकता । शरीर सम्बन्धी आवश्य
*"इच्छा-कारेण सदिसह भगवं !..." . - इस पाठ का ध्यान करना चाहिए । इसमें गमनागमन सम्बन्धी
दोपों का विचार करके उनका परिहार किया जाता है।'