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द्वादश अध्याय
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सांप्रदायिक अभिनिवेप ही है, ऐसा मानना चाहिए ! वस्तुतः प्रासुक पानी झूठा नहीं होता। . इस तरह साधु अपने लिए वना हुया आहार-पानी स्वीकार नहीं करते । गृहस्थ के घरों में से शुद्ध-सात्त्विक एवं निर्दोष आहारपानी ग्रहण करते हैं । यह एपणा समिति भी चार प्रकार की है१ द्रव्य,२ क्षेत्र,३ काल अोर ४ भाव । द्रव्य से निर्दोष आहार-पानी, वस्त्र,पात्र आदि ग्रहण करते हैं । क्षेत्र से विहार के समय साढे चार माइल से आगे आहार-पानी नहीं ले जाते हैं । काल के प्रथम प्रहर का लाया हुआ आहार-पानो चतुर्थ पहर में नहीं खाते हैं। भावं से . अनुकूल या प्रतिकूल जैसा भी आहार उपलब्ध होता है, उसे समभाव-पूर्वक ग्रहण करते हैं। . .४-प्रादान-भांड-मात्र निक्षेपना-समिति-प्रस्तुत समिति का अर्थ यतना. पूर्वक संयम-साधना में आवश्यक उपकरणों को ग्रहण करना और .. रखना है.। साधना में उपकरण की भी आवश्यकता पड़ती है । आहार
लाने एवं खाने के लिए पात्र, जीव-रक्षा के लिए रजोहरण, मुखवस्त्रिका, लज्जा ढकने के लिए वस्त्र एवं निद्रा या प्रमाद से मुक्त होने के लिए प्रासन रखना होता है । इसके अतिरिक्त आवश्यकता- .. वश तख्त, पुस्तक-पन्ने, पेन्सिल, तृण आदि लेने एवं रखने पड़ते हैं । अतः इनको ग्रहण करते समय एवं रखते समय विवेक रखने की आवश्यकता है । जिससे व्यर्थ ही किसी जीव की हिंसा नहीं हो जाए । इसी बात से सावधान करने के लिए प्रस्तुत समिति रखी · गई है। यह समिति भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से चार तरह
की है। द्रव्य से किसी वस्तु को अविवेक या अयतना से नहीं ___ रखना । क्षेत्र से-किसी भी वस्तु को अव्यवस्थित या इधर-उधर
विखेर कर नहीं रखना । काल से-यथासमय वस्त्र-पात्र की प्रति
मुखः