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प्रश्नों के उत्तर
~~~~~imirmirmwar लेखना करना और भाव से-संयम-साधना के लिए रखे हुए उपकरणों पर ममत्व नहीं रखना।
५-उच्चार-पासवण-खेल-जल-मल-परिठावणिया समिति-यह हम पहले वता चुके हैं कि साधना के लिए आहार ग्रहण करना । यावश्यक है । आहार के बिना शरीर चल नहीं सकता । और जव
आहार करते हैं तो निहार भी अनिवार्य है । मल-मूत्र, कफ आदि विकार शरीर के साथ लगे हैं । अतः इनका परित्याग करने के .. लिए विवेक एवं उपयोग का होना जरूरी है। क्योंकि यतना-विवेक के अभाव में अनेक जीवों की हिंसा हो जाती है, जिससे साधक भली-भांति संयम की आराधना नहीं कर सकता।
. इसके अतिरिक्त साधक के पास संयम-साधना में सहायक एवं , उपयोगी उपकरण भी रहते हैं, वस्त्र भी रहते हैं और कभी पात्र । टूट-फूट जाते हैं तथा वस्त्रं भी फट जाते हैं जो लज्जा-निवारण के .. लिए उपयोगी नहीं रह पाते हैं । ऐसी स्थिति में उन्हें भी परठना- : फेंकना होता है। इसलिए उन परठने-फेंकने योग्य पदार्थों को.
फेंकते समय यतना रखने के लिए पांचवीं समिति रखी गई और ... साधक को आदेश दिया गया है कि उसे मल-मूत्र,टूटे हुए पात्र आदि . . “परठने-फेंकने या त्यागने योग्य पदार्थों को एकान्त निर्जीव स्थान ... में परंठना चाहिए। इस समिति के भी चार प्रकार है--१. द्रव्य, ..
२ क्षेत्र, ३ काल और ४ भाव । द्रव्य से-मल-मूत्र आदि को ऐसे स्थान में परठना चाहिए, जहां लोगों का आवागमन कम होता हो, . और वह भूमि बीज,अंकुर,हरियाली से रहित हो,निरवद्य हो समतल हो,चूहे आदि के दिलों से रहित हो,और जहां जनता के स्वास्थ्य पर : . बुरा असर भी न पड़ता हो । साधु अपने संयम एवं नियम के साथ. .
जन-हित को भी ध्यान में रखता है। उसे ऐसा कार्य करने का
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