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प्रश्नों के उत्तर
ranirmiti तरह का नुक्सान नहीं, बल्कि लाभ ही है। इस से व्यक्ति परिवार, समाज एवं राष्ट्र का जीवन सुधरता है, जन-जीवन में सदाचार एवं त्याग-तप की ज्योति जगती है, देश में भ्रातृ-प्रेम की गंगा प्रवहमान - होती है।
यह समझना भी भारी भूल है कि साधु कोई काम नहीं करता, वह मुफ्त में ही खाता-पोता है। भले ही वह ऊपर से मेहनत करते हुए दिखाई नहीं देता, पर यदि गहराई से सोचा-विचारा जाए तो वह रात-दिन श्रम करता हुआ दिखाई देगा। इसी कारण उसे 'श्रमण' शब्द से संबोधित किया गया है। आज हमने मेहनत को कुछ भागों में बांट दिया है और उसकी एक सीमा निश्चित कर दी है। परन्तु श्रम की कभी सीमा नहीं होती है । किसान एवं मजदूर आदि का श्रम ही श्रम नहीं है, एक साधक की साधना भी श्रम है। यह बात अलग है कि दोनों के श्रम-मेहनत में अन्तर है । एक का श्रम भौतिक है, दिखाई देने वाला है तो दूसरे का आध्यात्मिक है और यदि गहराई से सोचा जाए तो आध्यात्मिक श्रम ही वास्तव में जीवन को उन्नत बनाने वाला है। आज के वैज्ञानिक युग में भौतिक श्रम की कमी नहीं है, फिर भी. विश्व विनाश के कगार पर खड़ा है, इसका एक मात्र कारण यही है. कि वैज्ञानिकों के जीवन में आध्यात्मिक श्रम का अभाव रहा है । प्राध्यात्मिक श्रम के प्रभाव में भौतिक श्रम या ताकत आज विश्व के लिए बरदान नहीं अभिशाप बन रही है। अस्तु भौतिकता के साथ आध्यात्मिकता का प्रकाश होना जरूरी है। आध्यात्मिक ज्योति के
अभाव में केवल भौखिक श्रम विश्व में शान्ति एवं नमन-चैन की धारा .. नहीं बहा सकता.। ...
... अतः जीवन विकास के लिए आध्यात्मिक श्रम भी आवश्यक है। ...साधु सदा आध्यात्मिक श्रम में संलग्न रहता है। जैसे किसान खेत को :
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