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एकादश अध्याय
उपयोग करना होता है । एक ओर धन का ढेर लगाने के लिए दूसरी ओर धन का खड्डा करना ही होता है। यदि एक. और मिट्टी और पत्यरों का पहाड़ खड़ा करना है तो उसके लिए दूसरी ओर कुप्रां बनाना ही होगा। यही स्थिति परिग्रह के क्षेत्र में है । अनेकों व्यक्तियों के समय, श्रम एवं धन का शोषण करके एक व्यक्ति अमीर या पूंजीपति बनता है। यही स्थिति राष्ट्रों की है। अपने राष्ट्र में पूंजी बढाने के लिए अधिक उत्पादन करना होता है और फिर उक्त सामग्री को बेचने के लिए बाज़ार खोजने पड़ते हैं। यदि उचित मूल्य देने वाले बाज़ार न मिले तो युद्ध के द्वारा कमजोर राष्ट्रों को अपने अधोन बना कर बाजार तैयार किए जाते हैं और वहां अपनी ताक़त से अपना माल खपा कर पैसा इकट्ठा किया जाता है। यही स्थिति व्यक्तिगत जीवन में है । एक पूंजीपति अपने माल को अधिक दामों में बेचने के लिए अपनी पूंजी की ताक़त से बाजार की स्थिति को बिगाड़ देता है, जब वह खरीदने एवं वेचने लगता है तो बाजार के .
भावों में इतना उतार-चढ़ाव एवं परिवर्तन ले पाता है कि उस प्रवाह - में छोटे-छोटे सैकड़ों-हजारों व्यापारी बह जाते हैं,उन की पूंजी उन की तिजोरो से निकल कर पूंजीपति की तिजोरी में जा. भरती है। इसी तरह वह गरीबों के काम के घण्टे. श्रम और मजदूरी को काट कर , अपना उत्पादन बढ़ाता है। इस तरह पूंजी के विस्तार करने में जहां उसका स्वयं का मन अशांत है एवं संकल्प-विकल्पों में डूबा रहता है, इधर-उधर से धन बटोरने के तरीकों एवं चालों को ढूंढता रहता है, वहां राष्ट्र के सामान्य स्थिति वाले मनुष्यों को भी उस के कारण
दुःखी एवं संतप्त होना पड़ता है। पूंजी का विस्तार स्वयं और परके : . . . जोवन के लिए अशान्ति एवं दुःख का कारण है। आज के सारे संघर्ष ।