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. .. एकादश अध्याय करना। . . . . . . . . . . . . . . .. ... ५-दैनिक.व्यवहार में आने वाले वस्त्र-पात्र आदि एवं घर के - अन्य सामान को मर्यादा से अधिक रखना। . . . . .
..... . प्रणव्रत :...उक्त पांचों व्रत अणुव्रत कहलाते हैं। यह हम पहले ही स्पष्ट - कर चुके हैं कि त्याग अपने आप में अणु नहीं,महान् है। भले ही ऊपर से
छोटा-सा दिखने वाला भी त्याग क्यों न हो, वह जीवन को एक नया . : मोड़ देने वाला होने से महान ही है। यहां जो उसे अणु कहा गया है, . वह अपेक्षा से कहा गया है। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और .. अपरिग्रह ये पांचों व्रत साधु भी स्वीकार करता है और गृहस्थ भी। . साधु पूर्ण रूपेण स्वीकार करता है और गृहस्थ एक देश से, अर्थात् मर्यादित रूप में इनका पालन करता है ! इसी भेद को स्पष्ट करने के . . लिए साधु के व्रतों को महाव्रत और श्रावक के व्रतों को अणुव्रत का नाम -दिया गया है। इन्हें मूल गुण भी कहते हैं। क्योंकि जीवन के सारे सद्गुणं इन्हीं के आधार पर स्थित रहते हैं। अतः साधु एवं श्रावक दोनों के लिए ये मूल गुण हैं, इनके अतिरिक्त किए जाने वाले शेष सभी त्याग-प्रत्याख्यान उत्तर गुण कहलाते हैं। ..
3 . :.: . ..... : ......... तीन गाव्रत । ... प्रस्तुत व्रत अणुव्रतों को परिपुष्ट करने वाले है। इन को स्वीकार करने से मूल गुणों में अभिवृद्धि होती है। इस कारण इन्हें गुणवतं
कहा गया है। अर्थात् ये मूलं गुणों का परिपोषण करने वाले हैं। ये गुण. व्रत तीन हैं- १-दिक्-परिमाण व्रत, २-उपभोग परिभोग-परिमाण व्रत
और ३-अनर्थदंड-विरमण व्रत।