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प्रश्नों के उत्तर .
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दो घड़ी की ही क्यों वांधी गई, इससे कम या ज्यादा समय क्यों नहीं रखा गया ? इस का उत्तर यह है कि व्यक्ति का चिन्तन-मनन या संकल्प अधिक से अधिक दो घड़ी तक एक विषय पर स्थिर रह सकता है. उसके बाद विचारधारा एवं चिन्तन में अवश्य ही अन्तर पा जायगा * । अस्तु जैन दर्शन की इस मान्यतानुसार शुभ संकल्पों को ले कर स्वीकार की गई सामायिक की साधना दो घड़ी तक सामान रूप से चल सकती है । इस कारण प्राचार्यों ने दो घड़ो का समय निश्चित किया। . .. ... . ... ... ... ... ..... ............." ... सामायिक व्रत का परिपालन करने वाले व्यक्ति को ५ बातों से सदा बचकर रहना चाहिए ।..... ........... . -
.. -१-मन-को विषम बनाना, समता से दूर ले जाना, बुरे विचारों एवं संकल्प-विकल्पों में लगाना।
२-भाषा बोलने में विवेक. नहीं रखना। कटु एवं असभ्य वचन वोलंना, गालियें देना।..
:: : : . ३-शारीरिक कचेष्टाएं करना .....-सामायिक लेने के समय को भूल जाना या. इस बात को हो विस्मृति को गहन अंधकार में ढकेल देना कि मैंने सामायिक स्वीकार
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५-अव्यवस्थित रीति से सामायिक करना। कभी करना, कभी नहीं करना और करने के बाद उसकी. डोंडो पीटना । पातुरता के. साथ सामायिक समाप्त होने के समय को देखते रहना। पूरी सामायिक घड़ी देखने में ही बिताना । . .: ... .. ...................marrrrrrrrrrrrrrrrainrariamirmi r mire .. अन्तोमुत्तकालं चित्तरसेगग्गाया हवइ झागं । . .. ... ........
-आवश्यक सूत्र मलयगिरी, ४,४ .:.
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