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द्वादश अध्याय.
अहिंसा
ओके शुल्क
नी
हिसा का अर्थ है- किसी प्राणी को पीड़ा पहुचाना या उसके प्राणों
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का नाश करना । अस्तु, अहिंसा का अर्थ हुआ कि मानसिक, वाचिक और कायिक शारीरिक प्रवृत्ति से किसी भी प्राणी को कष्ट ਨਵੀਂ "पहुंच ना या किसी भी प्राणी के प्राणों का नाश नहीं करना । यह हुआ अहिंसा का एक निषेधात्मक ( Negative) पहलू । परन्तु अहिसा केवल निवृत्ति परक ही नहीं है, उसका दूसरा विधेयात्मक (Positive) पहलू भी है । वह है, किसी भी कष्ट एवं दुःखदर्द में छटपटा रहे प्राणों को शान्ति पहुंचाने का तथा उसे दुःख के गर्त में से निकालने का प्रयत्न करना और मरते हुए प्राणी की रक्षा करना । इस तरह अहिंसा का अर्थ हुआ - किसी प्राणी को मन, वचन और शरीर से कष्ट नहीं देना, किसी के प्राणों का घात नहीं करना तथा दुःख में फंसे हुए व्यक्ति को उसमें से निकालना और अपने प्राण देकर भी मरते हुए प्राणी की रक्षा करना ।
कुछ व्यक्ति अहिंसा के दूसरे पहल को 'हिंसा' को कोटि में * पहलू का मानते हैं । जिसे ग्राजकल की सांप्रदायिक भाषा में वे सांसारिक उपकार, लौकिक धर्म या लौकिक दया कहते हैं । परन्तु भ्रम विध्वंसन तथा आचार्य भीषण जी द्वारा रचित अनुकम्पा आदि की ढालों-कवितानों में उसका अर्थ ग्रहिसा से विपरीत मिलता है । क्योंकि उक्त क्रियाओं से पाप कर्म का वन्ध कहा है $ । परन्तु वस्तुतः देखा जाए तो यह दृष्टि गलत है । रक्षा करने श्रीर और मारने की भावना तथा
* श्वे. जैन तेरहपंथ सम्प्रदाय, ।
$ इस सम्बन्ध में स्पष्टता के साथ श्रागे प्रकाश डाला जायगा ।