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द्वादश अध्याय प्राकुल-व्याकुल तो नहीं हो जाता ? आदि सभी प्रश्न केशलोच के समय समाहित हो जाते हैं।
- केशलोच ही ऐसी परीक्षा है जो जैन साधु के अन्तरंग जीवन का प्रत्यक्ष दर्शन करा देती है । वास्तव में कष्ट में ही जीवन को सहन शीलता का परिचय मिलता है। इन पंक्तियों के लेखक ने एक बार - बंगाल के राजनैतिक क्रान्तिकारी दल का एक इतिहास पढ़ा था। उस ..
के एक अध्याय में क्रान्तिकारी दल का सदस्य बनने के लिए कुछ ... नियमों का निर्देश किया गया था। उन नियमों में एक नियम यह भी .
था कि इस दल का सदस्य वनने वाले व्यक्ति को प्रज्वलित दीपकशिखा पर अंगुली रखनी पड़ती थी । अग्निदाह से उंगली के जलने पर ... भी जो व्यक्ति उफ तक नहीं करता था, उसे उस दल का सदस्य : बनाया जाता था। अनुमान लगाइये, क्रान्तिकारी देल का सदस्य बनने के लिए अपने को कितना सहनशील प्रमाणित करना पड़ता था। .. इस कठोर परीक्षा के पीछे यही भावना थी कि दल का सदस्य
सरकार द्वारा वन्दो बनाए जाने पर आग में भी जला दिया जाए तव
भी वह डांवाडोल न होने पावे। और अपने दल.. के रहस्य प्रकट न .. करने पावे। केशलोच भी इसो प्रकार को एक परीक्षा है। केशलोंच . कराने वाले साधक भी एक क्रांतिकारी दल के रूप में हमारे सामने
आते हैं. यह सत्य है कि इस दल की क्रांति प्राध्यात्मिक क्रांति है । इस में किसी के विनाश का कोई लक्ष्य नहीं होता है । इस क्रांति में आत्मा. . .
को विकारों के साथ संघर्ष करना पड़ता है। विकारों के राज्य पर . काबू पाने के लिए ही इस क्रांति का प्राश्रयण किया जाता है। परन्तु - इस प्राध्यात्मिक क्रांतिकारी दल का सदस्य बनने के लिए भी मनुष्य
को परीक्षा देनी पड़ती है। ताकि विकारों द्वारा वन्दो बना लिए जाने
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