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प्रश्नों के उत्तर ...
प्रश्नों के उत्तर पर यह डांवाडोल न हो जाए । विकारों के प्रहारों से प्राकुल होकर : कहीं यह संयम भ्रष्ट न हो जाए। एतदर्थ उसको केशलोच द्वारा परोक्षा लो जाता है । जो इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाता है, उस पर विकारों के कितने हो प्रहार हों और उस पर कितना भी सकट प्रा. जाए, फिर भी वह धर्म से च्यूत नहीं होता। प्रत्युत धर्म को जीवन के - साथ संभाल कर रखता है। केशलोच जैसो भीषण परीक्षा प्रत्येक व्यक्ति नहीं दे सकता। यह परीक्षा तो वहीं दे सकता है, जिसका ". मानस, तप, त्याग की पवित्र भावना से सदा भावित रहता हैं जितने मोक्ष को ही अपना परम-साध्य बना लिया है, वहीं व्यक्ति इस अहिंसक परोक्षा में अपने को प्रस्तुत करता है। फिर यह परीक्षा ऐसी : विलक्षण है कि प्रतिवर्ष देनी पड़ती है। बंगाल के क्रांतिकारी दल के
सदस्य को तो एक बार ही परीक्षा देनी पड़ती थी, किन्तु केश लोच , ___ की परीक्षा साध को प्रति वर्ष देनी होती है। ....... लोच को हिंसा समझना ठीक नहीं है। क्योंकि हिंसा में दूसरों - को दुःख दिया जाता है। परन्तु लोच में दूसरों को दुःख नहीं दिया
जाता, प्रत्युत दुःख सहन किया जाता है। ऐसी स्थिति में लोच को। ... हिंसा कैसे कहा जा सकता है ? दूसरी बात, लोच कराने वाला साधक ...
उसे दुःख समझ कर नहीं कराता है । वह तो उसे अध्यात्मिक परीक्षा । को घड़ा समझता है। जैसे विद्यार्थी पराक्षा में बड़े उत्साह से वठता : है।वैसे ही साधु इस परीक्षा में सोत्साह भाग लेता है और उसमें ...
mamimarimmissi rmwamirmiri.. :: आजकल वर्ष में दो बार सर की लोच कराने की परम्परा पाई जाती : ... है । यह सत्य है, किन्तु यह तो साधक की साधना की पराकाष्ठा है। साधक
अधिक स अधिक साधना का लाभ प्राप्त करना चाहता है । वैसे शास्त्रीय " : दष्टि स वर्ष में एक बार लोच कराना आवश्यक है।
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