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द्वादश अध्याय'. .......
mirrrrrrrr.. पड़ता हो। परन्तु सत्य भाषा के साथ मधुरता भी होनी चाहिए। जिस सत्य के साथ कंटुता रहती है या यों कहिए जो सत्य दूसरे के मन को दुखाने-पीड़ा पहुंचाने के लिए, उसको नोचा दिखाने के लिए,... उसका अपमान-तिरस्कार करने के लिए या उसका सर्वनाश करने की दृष्टि से वोला जाता है, वह सत्य नहीं वस्तुतं असत्य है । सत्य वचनयथार्थ और कल्याणकारी, हितकारी एवं मधुर होना चाहिए।
सत्यं के भी नव भेद बताए गए है-- मन, वचन और काया से असत्य बोले नहीं, दूसरे को असत्य बोलने को कहे या प्रेरित करें नहीं
और असत्य बोलने वाले को अच्छा भी नहीं समझे। इस तरह साधु
सर्वथा असत्यं का त्याग करता हैं । इसलिए वह कभी भी दूसरे व्यक्ति .. को कष्ट हो ऐसी सावद्य- पापकारी भाषा का तथा निश्चयकारी--, .
जब तक किसी भी वस्तु या प्राणी के संबंध में पूरा निश्चय न हो
भाषा का उपयोग नहीं करता । यदि कभी उसके सामने यथार्थ. .बात कहने का प्रसंग उपस्थित हो जाए तो उस समय मौन रहता है।
सत्य- यथार्थ भाषा हो,परन्तु साथ में सर्व क्षेमकारी भी होना.. चाहिए। क्योंकि साधु का जीवन जगहित के लिए होता है । अतः उस .. की भाषा भी कल्याणकारी होनी चाहिए। इसी भावना को ध्यान में ... रखकर सत्य को भगवान और लोक में सारभूत कहा है *। सत्य से ... बढ़ कर दुनिया में काई पदाथा नहीं है। ......... .......... .. ... अस्तयः
: 'स्तेय का अर्थ है चोरी करना । चोरी करना भी पाप है। इस "सच्चंखु भगवं," "सच्चं लोगम्मि सारभूयं”
प्रश्नव्याकरण सूत्र, संवरद्वार 1.
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