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प्रश्नों के उत्तर
वचन को या शरीर को प्राधात नहीं पहुंचे। अतः साधु को विचार . एवं विवेक पूर्वक भाषा बोलनी चाहिए। उसे १-कर्कश-कठोरः २-छेदभेद उत्पन्न करने वालो, ३-हास्य, ४-निश्चय, ५-पर प्राणी को पीड़ा . कष्ट पहुंचाने वाली, ६-सावद्य-पाप युक्त, ७-मिश्र-जिस भाषा में कुछ अंश सत्य हो और कुछ असत्य अथवा जिसमें सत्यासत्य का मिश्रण हो पौर ८-असत्य, ऐसी आठ प्रकार की भापा का सर्वथा त्याग करना.. चाहिए। क्षेत्र अर्थात् रास्ते में चलते समय नहीं बोलना चाहिए। काल-.. रात में एक प्रहर व्यतीत होने के बाद नहीं बोलना चाहिए. यदि कभी.. विशेष परिस्थिति में बोलना भी पड़े तो इतने धीमे स्वर से बोलना . चाहिए कि इतर प्राणी को निद्रा में विघ्न न पड़े। भाव-विवेक एवं यतना पूर्वक बोले जिससे दूसरे जीवों की हिंसा न हो। मन में कलुषता :
या छल-कपट रख कर न बोले तथा खुले मुंह भी न बोले । क्योंकि - .खुले मुंह बोली जाने वालो भाषा को पागम में सावध भाषा कहा
- एषणा समिति . धर्म को साधना के लिए शरीर महत्त्वपूर्ण साधन है और शरीर . को आहार से पोषण मिलता है । अतः प्राहार जीवन के लिए प्राव-....
श्यक है और प्राहार के बनने में हिंसा अवश्य होतो है.। भोजन की... . सामग्री प्राप्त करने के लिए तथा उसे बना कर तैयार करने के लिए .... .' हिंसा तो करनी ही पड़ती है, तो फिर साधु-भोजन की व्यवस्था कैस .... करे ? यह बात इस ऐषणा समिति में बताई है। .................. ..साधु स्वयं भोजन नहीं बनाता । वह गृहस्थ के घर में बने हुए .....
ओजन में से मांग कर ले आता है। परन्तु वह दूसरे भिक्षुओं या . : भीखमंगों की तरह मांग कर नहीं लाता। वह भिक्षा लाते समय इस.. ....