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एकादश अध्याय
दाहिनी जांघ के नीचे दबा कर बैठना पर्यंकासन है । इसका दूसरा नाम सुखासन भी है। सर्व साधारण इसे आलथी - पालथी भी कहते हैं ।
प्रश्न- सामायिक करते समय मुख किस दिशा में रखना चाहिए ?
उत्तर- प्रत्येक धार्मिक क्रिया करते समय मुखं पूर्व या उत्तर दिशा में रखना श्रेष्ठ माना गया है । यदि गुरुदेव उपस्थित हों तो उस समय उनके सम्मुख बैठ कर सामायिक आदि साधना करनी चाहिए। उनके सामने दिशा का सवाल नहीं उठता। परन्तु गुरु की अनुपस्थिति में पूर्व या उत्तर में मुख करके सामायिक की साधना करनी चाहिए । भारतीय संस्कृति के सभी विचारकों ने पूर्व और उत्तर दिशा को महत्त्व दिया है ।
प्रश्न - श्रावक के लिए सामायिक काल दो घड़ी ( ४८ मिण्ट ) का ही क्यों रखा है? जबकि सामायिक के प्रतिज्ञा-पाठ में तो केवल 'जावनियमं ' इतना ही मिलता है । अर्थात् जब तक नियम है या जितनी देर साधक ने बैठने की इच्छा है। यहां काल के संबंध में कोई निश्चित समय नहीं दिया है । फिर यह दो घड़ी का बन्धन क्यों ?
उत्तर - यह सत्य है कि सामायिक के प्रतिज्ञा पाठ में काल मर्यादा निश्चित नहीं की है, तथापि सर्वसाधारण जनता को नियमबद्ध करने तथा सबकी साधना में एकरूपता लाने के लिए पूर्वाचार्यों ने दो घड़ी की मर्यादा बांध दी है। इस पर प्रश्न यह हो सकता है कि वह मर्यादा