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.. प्रश्नों के उत्तर
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साफ करने, सब्जी काटने प्रादि के साधनों का आवश्यकता से अधिक संग्रह करके रखना । उपभोग-परिभोगरति- उपभोग-परिभोग की सामग्री को अनाश्यकता से अधिक संग्रह करके रखना तथा मर्यादित सामग्री में भी अधिक आसक्ति रखना। ये पांचों दोष त्याग मार्ग से . गिराने वाले हैं, अतः श्रावक को पूर्ण सावधानी से व्रतों का परिपालन करना चाहिए। ये अतिचार-दोष श्रावक के लिए जानने योग्य हैं, :.. आचरण करने योग्य नहीं या दूसरे शब्दों में यों कहिए कि श्रावक इन दोषों से सर्वथा बचकर रहता है।
शिक्षा व्रत .... श्रावक का जीवन भी त्यागमय है। साधु और श्रावक के जीवन में इतना ही अन्तर है कि साधू हिंसा आदि दोषों को सर्वथा त्याग करता है और श्रावक उक्त दोषों का अंश रूप से त्याग करता है। उसमें त्याग की परिपूर्णता नहीं होती। इसलिए उसकी गाग भावना ... में अभिवृद्धि लाने के लिए सहयोग की आवश्यकता है। इसी कारण :
आगमकारों ने अणुव्रतों को परिपुष्ट करने के लिए तीन गुणव्रत रखे हैं। गुणवतों के परिपालन से जीवन में आवश्यकताएं सीमित हो जाती हैं, : श्रावक पुद्गलानन्दी न रह कर प्रात्मानन्द को ओर प्रवृत्त होता है। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह पुद्गलों-पदार्थों का उपभोग ही नहीं करता। वह उपभोग करता है परन्तु उसकी दृष्टि ऐशोराम एवं मौज- : शौक करने की नहीं, प्रत्युत जीवन-निर्वाह करने की होती है। वह । अपनी आवश्यक प्रवृत्ति में भी निवृत्ति की ओर बढ़ने के लिए प्रयत्न-...
शील रहता है। श्रावक की इस निवृत्ति प्रधान चेष्टा में अभिवृद्धि • लाने के लिए किसी शिक्षक या प्रेरक साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है । इसके लिए जैनाचार्यों ने चार शिक्षाव्रतों का उल्लेख किया :