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प्रश्नों के उत्तर . .
५२६ मस्तिष्क भी शान्त एवं स्वस्थ रहता है । बाल-बच्चे एवं परिवार के .. अन्य सदस्य निद्रा देवी की गोद में सोए होने से वातावरण भी शांत .. एवं प्रशांत रहता है। दूसरे समय में बाल-बच्चों को शोरोगुल बना रहता है, परिवार के सदस्यों की हलचल बनी रहती है, रोगी आदि की मांगे भी साधक के चिन्तन में विघ्न पदा करती रहती है। अतः ऐसे समय में सामायिक की साधना ठीक तरह से नहीं हो सकती। .. इसलिए सामायिक प्रात: या सायंकाल ही करनी चाहिए। शाम के ..
समय भी सभी कार्यों से मुक्त हो जाने के कारण उसकी साधना फिर... भी ठीक चल सकती है। परन्तु प्रातः जितनी शांति शाम के समय .. नहीं रहती। इस कारण चिन्तन-मनन के लिा प्रातःकाल का समय . ही सवोत्तम माना गया है । भाव शुद्धि का अर्थ है- मन में राग-द्वेष एवं कषायों का स्पर्श न होने पाए। जैसे हरी सब्ज़ी, कच्चे पानी :: आदि के तथा पुरुष एवं स्त्री आदि के स्पर्श से बचा जाता है तथा . ' इनका स्पर्श हो जाने पर प्रायश्चित्तं स्वीकार करके शुद्धि की जाती है; - उसी तरह मन में इतनी सावधानी एवं जागरूकता रखी जाए कि . कषाओं एवं राग-द्वेष का स्पर्श न हो, वाणी एवं शरीर से तो क्या .
मन में भी कषायों की विचारणा एवं चिन्तना न होने पाए। यदि.. . कभी मोहवश या आवेशवश योगों की प्रवृत्ति राग-द्वेष या कषाय आदि ..... - मनोविकारों में हो रही हो तो अपने योमों को उससे तुरन्त हटा कर : उसका प्रायश्चित्त करके अन्तःकरण की शद्धि की जाए। इस तरह
सामायिक शुद्ध रखने के लिए द्रव्य और भाव शुद्धि रखना आवश्यक है। क्योंकि भावों को शुद्ध बनाने के लिए द्रव्य, क्षेत्र और काल की...
शद्धि रखना ज़रूरी है। बाह्य वातावरण के शुद्ध एवं सात्त्विक बने. .. ... विना आन्तरिक वातावरण में परिवर्तन आ नहीं सकता और अन्त- . " मन में हो रही विकारों की उछल-कूद बन्द हुए विना द्रव्य साधना
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