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प्रश्नों के उत्तर
आज के युग में भावों को शुद्ध रखना कठिन है, ऐसी स्थिति में शुद्ध सामायिक की साधना कैसे की जा सकती है? ..... उत्तर- जीवन विकास के लिए वैचारिक एवं मानसिक शुद्धि होना अ-. त्यावश्यक है,परन्तु भावना की विशुद्धि भी द्रव्य पर आश्रित है। केवल भावना शुद्ध रखने का नारा लगाया जाए और साथ में द्रव्य क्रिया न. को जाए तो भावों को शुद्धि का मूल्य एडवरटाइजमेंट के रूप में हो - रह जायगा, और द्रव्य क्रियाएं तो की जाती है परन्तु मन में समभाव: की धारा नहीं बह रही है, काम-क्रोध एवं अहंकार आदि मनोविकारों .. पर कण्ट्रोल करने की अोर लक्ष्य नहीं है, तो वह क्रिया-काण्ड केवल 'बोझ रूप में ही रह जायगा । अस्तु, द्रव्य और भाव का समन्वय ही - ... जीवन विकास का मूल आधार है। ........ ... ........
... यह सत्य है कि मानसिक एवं वैचारिक चिन्तन को शुद्ध रखना : तथा अपने मन को आत्म-चिन्तन में, आत्म-निरीक्षण में लगाए रखना, कठिन अवश्य है, परन्तु सर्वथा असंभव नहीं है । यदि मन पूरी तरह .
चिन्तन में नहीं लगता है, तो द्रव्य क्रिया भी नहीं को जाए, यह समझ ... ना, मानना एवं करना उचित नहीं कहा जा सकता। यह ठीक है कि . - द्रव्य क्रिया के साथ भाव शुद्धि भी बनी रहे तथा मन को समभाव की . . साधना में लगाए जाए। यदि किसी समय मन कण्ट्रोल से बाहर होकर ...". इधर-उधर भागता है, तब भी द्रव्य क्रिया सर्वथा अनुपयोगी नहीं है। - . क्योंकि जो व्यक्ति द्रव्य क्रिया करता है, द्रव्य साधना को साधता .
· रहता है, वह व्यक्ति जल्दी या देर से भाव साधना का भी साध सकता . है, उसके चिन्तन एवं विचारों में अभिनव ज्योति जाग सकती है। . .. वह अपने वैचारिक एवं मानसिक चिन्तन-मनन को नया मोड़ दे सकता - है। परन्तु भाव शुद्धि न रहने की बात कह कर जो व्यक्ति द्रव्य क्रिया।