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प्रश्नों के उत्तर
५२२ करता है, दफ्तर में कर्मचारियों के तथा जनता के साथ व्यवहार करता है, घर में अपने परिवार के साथ जीवन व्यतीत करता है । क्योंकि उक्त प्रवृत्ति-क्षेत्र में कई तरह की विषम प्रवृत्तियें सामने आती हैं, काम-क्रोध, लोभ-मोह आदि के अंधड़ पाकर मानव को. झकझोरते हैं, ऐसे विकट समय में अपने पथ पर अडिग एवं दृढ़ हो कर गति करना ही सामायिक की साधना का सही अर्थ है। सामायिकभवन में जहां कषायों के उदीप्त होने का साधन नहीं है वहां समभाव में संलग्न रहने का उतना मूल्य नहीं है, जितना कि कषायों का वाता
वरण उपस्थित होने पर भी उसके प्रवाह में नहीं बहने में है। अस्तु, .४८मिण्टों की साधना जीवन को पूरे दिन समभाव में स्थित रखने के
लिए है। .: सामायिक का स्थान ९वां हैं । ५ अणुव्रत एवं ३ गुणवत के वाद इसकी साधना का आदेश दिया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि ५ अणुव्रत एवं ३ गुणव्रत स्वोकार करके जीवन को सयमित, नियमित
एवं मर्यादित बना लिया है तथा आवश्यकताओं को कम कर दिया है। . और इस बात को हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि विषमता, संघर्ष
एवं कलह-कदाग्रह की जड़ तृष्णा है। आवश्यकताएं जितनी अधिक ... होगी जीवन में उतनी ही अधिक अशांति होगी। अत: समभाव की
साधना के लिए तथा प्राणी जगत के साथ मंत्रो संबंध जोड़ने के लिए . . जीवन की आवश्यकताएं सीमित होना ज़रूरी है । अस्तु,सामायिकव्रत
गृहस्थ जीवन में रहते हुए, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं ... प्रौद्योगिक समस्याओं को हल करते समय सामने आने वाली विषम
ताओं से बचने की शिक्षा देता है, उस समय अपनी वासनाओं एवं
कषांगों पर नियंत्रण रखने का मार्ग बताता है। इसलिए इसे शिक्षा. .. व्रत कहा गया है। . . ... ... . . . . .