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एकादश अध्याय
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कि विद्यार्थी स्कल या कालिज में कुछ घण्टों के लिए अध्ययन करने जाते हैं। परन्तु उनका वह अध्ययन कुछ घण्टों के लिए नहीं होता श्रौरन स्कूल के लिए हो होता है, परन्तु पूरे जीवन के लिए होता है । यदि कोई विद्यार्थी इन्जिनियरिंग की परीक्षा पास करके आता है और श्रीर कारखाने में प्रवेश करते ही कहता है कि मेरा ज्ञान-विज्ञान तो स्कूल या कॉलिज तक ही सुरक्षित था, व तो मैं सब कुछ भूल गया, तो सुनने वाला कहेगा अरे मूर्ख ! फिर अध्ययन के लिए इतना समय बर्बाद करने की क्या जरूरत थी ? क्योंकि उसकी आवश्यकता तो जीवन के क्षेत्र में ही है, न कि स्कूल की चार दीवारी में । वह तो अध्ययन का साधना क्षेत्र है, उसका उपयोग व्यावहारिक एवं व्यापारिक तथा पारिवारिक या सामाजिक क्षेत्र में है । इसी तरह सामायिक के लिए ४८ मिण्टों का समय सिर्फ समभाव की साधना के लिए है । श्रावक उस समय में उक्त साधना से यह शिक्षा ग्रहण करता है कि मुझे अपनी प्रवृत्ति को कैसे रखना चाहिए कि जिससे मैं विषम भाव से . वच सकूँ? सबके साथ मैत्री भाव रख सकूं ? ४८ मिण्टों के समय में वह पूरे दिन का कार्यक्रम बनाता है. अपनी वृत्ति को शुद्ध एवं सात्त्विक रखने की योजना तैयार करता है तथा पिछले दिन को प्रवृत्ति का अवलोकन करता है कि मैंने दिनभर में कोई भूल तो नहीं की है, कहीं मैं अपने पथ से भूला-भटका तो नहीं हूं। इस तरह ४८ मिण्टों का समय शिक्षा लेने के लिए है । इस समय साधक समस्त सावद्य कर्मों से निवृत्त हो कर अपने मन, वचन और शरीर को समस्त सांसारिक प्रवृत्ति से हटा कर साधना में संजन होता है । परन्तु उसका उपयोग केवल उस समय एवं उस स्थान के लिए ही नहीं, बल्कि प्रवृत्ति क्षेत्र के लिए है या यों कहिए उस समभाव का महत्व उस समय के लिए है, जब वह दुकान पर व्यापार में प्रवृत्त होता है, खेत में जा कर खेती
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