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- प्रश्नों के उत्तर :
Annoinninen
चिन्तन को लगाना अपध्यान है । आर्त और रौद्रध्यान के भेद से यह ..... दो प्रकार का माना गया है। इससे मनुष्य स्वयं संक्लेश को प्राप्त होता है और दूसरे जोवों को भी संक्लेश एवं कष्ट पहुंचाता है । अतः । श्रावक को आर्त और रौद्र ध्यान नहीं करना चाहिए। * - .:::.
२-प्रमादाचरित = प्रमाद का आचरण करना। मद; विषय, कषाय,निद्रा और विकया ये पांच प्रमाद कहे गए हैं। गृहस्थ. जीवन में इनका सर्वथा त्याग कर मकना कठिन है। अतः इनके सकारण और निष्कारण दो भेद किए गए हैं । आवश्यकता पड़ने पर विवेक पूर्वक ::
सेवन करना अर्थ दण्ड है और निष्प्रयोजन एवं अविवेक पूर्वक सेवन - करना अनर्थ दण्ड है। ...... ....... .... ...
३-हिंसा-प्रदान = हिसा के साधन तलवार, रिवॉलवर, बन्दूक, • बम्ब,राकेट आदि संहारक शस्त्रास्त्रों का आविष्कार करना तथा उन्हें । तयार करके दूसरे को देना या किसी हिंसक एवं क्रूर मनुष्य तथा चोर
डाकू के हाथ में तलवार आदि शस्त्र देना और तेल, घो, दूध आदिः . ... के बर्तन को खुला रख देना, इससे निष्कारण ही हिंसा हो जाती है... ...... तथा हिंसा को बढ़ावा मिलता है । अतः श्रावक को प्रत्येक कार्य सोच. '
समझ कर विवेक पूर्वक करना चाहिए । न तो हिंसक व्यक्ति के हाथ में हथियार देना चाहिए और नॉही द्रव पदार्थों को खुला ही रखना चाहिए। क्योंकि इससे अनेक निर्दोष प्राणियों को हिंसा होने को . संभावना है। .......... :: : - . :.:. .:.....: .... ४-पाप-कर्मोपदेश = पापकर्म का उपदेश देना । जिस उपदेश या .
memoina mannannnnnarannanna . इष्ट वस्तु के वियोग और अनिष्ट पदार्थ के संयोग होने पर मन में जो : - दुःख पूर्ण विचारणा चलती है, उसमें डूबे रहना आर्तध्यान है और हिंसादि : ... क्रूर भावों की जिसमें प्रधानता है, ऐसे चिन्तन में संलग्न रहना रौद्र धयान है ।