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एकादश अध्याय
अल्पारंभी है और प्राधा लोटा पानो फेंकने वाला महारंभी है। क्यों
कि खेत को हजार गेलन पानी देने वाला व्यक्ति पानी के मूल्य को .... जानता-समझता है। उसके पास और ऐसी कोई वस्तु है नहीं जिसे
पानी की जगह दे कर काम चला सके। अतः उसे अावश्यकतानुसार .. पानी देना पड़ता है। परन्तु वह इस बात का सदा ख्याल रखता है
कि आवश्यकता से अधिक किसो चीज़ का दुरुपयोग न हो। परन्तु प्राधा लोटा पानी फेंकने वाले की दृष्टि में उसका कोई मूल्य नहीं
रहता । वह निष्प्रयोजन फेंकता है, अतः अनावश्यक की जाने वाली - क्रिया अनर्थादण्ड है और वह महापाप बन्ध का कारण है। . इस तरह यह व्रत दिक् परिमाण व्रत में रखी हुई दिशाओं और सातवें व्रत में रखो हुई उपभाग-परिभोग को सामग्रो में भी अपनी
आवश्यकताओं को घटाने की प्रेरणा देता है। जीवन में आवश्यकताएं . जितनी अधिक होती हैं, उनकी पूर्ति के लिए उतना ही अधिक धनसंग्रह करना होता है । और संग्रहवृत्ति की अधिकता के अनुसार तृष्णा भी अधिक होती है। इस तरह उसकी पूर्ति एवं प्राप्त किए गए पदार्थों के संरक्षण एवं उसमें अभिवृद्धि करने के लिए मन में अनेक
तरह के संकल्प-विकल्प बने रहते हैं। चित्त सदा अशान्त बना रहता . है । इसलिए श्रावक को अपनी आवश्यकताएं कम करते रहना चाहिए । निष्प्रयोजन किसी भी वस्तु को इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए और न किसी वस्तु को बर्बाद करना चाहिए- चाहे वह वस्तु अल्प मूल्य की हो या बहुमूल्य की। ...... .. ...अनर्थ दण्ड चार प्रकार का होता है- १-अपध्यान, २-प्रमादा- . चरित्र, ३-हिंसाप्रदान और ४-पापकर्मोपदेश। .
१-अपध्यान= ध्यान का अर्थ होता है- चिन्तन अर्थात् किसी प्रकार के विचार में मन को एकाग्रं करना । बुरे विचारों में अपने