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एकादश अध्याय
दूसरे देश सहज ही माल खरीदने को तैयार नहीं होते । अतः अपने से कमजोर राष्ट्रों को शक्ति से दवाया जाता है या परतन्त्र बना कर वहां अपना माल बेचा जाता है । इसके लिए उन्हें संहारक शस्त्रों का भण्डार भी तैयार करना पड़ता है। और एक- दूसरे राष्ट्र से भागे बढ़ने के लिए संहारक अस्त्रों की शक्ति को बढ़ाने का प्रयास किया जाता है । तोप बन्दूक बम्व स लेकर एटम और उद्जन वम्ब तक के निर्माण का इतिहास इस का ज्वलन्त प्रमाण है । इस तरह यन्त्रवाद महाहिंसा का साधन है । अस्तु, श्रावक को यन्त्र से उत्पादन बढ़ाकर व्यापार नहीं करना चाहिए।
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१२- निलंछन-कम्मे - बैल, भैंसा आदि पशुपों को नपुंसक करके उसका व्यापार करना। इससे पशुओं को असह्य कष्ट भी होता है और उनकी नस्ल भी खराब होती है, अतः श्रावक को ऐसा व्यापार नहीं करना चाहिए ।
१३- दवग्गी-दावणिया कम्मे - जंगल को जला कर ज़मीन को साफ करके उससे प्राजीविका चलाना । बहुत से लोग जंगलों में भूमि को साफ करने के लिए अधिकं श्रम न करना पड़े, इसलिए आग लगा कर उसके ऊपर के समस्त घास-फूस को जला डालते हैं । इस कार्य में अनेक जीवों को हिंसा होती है। अतः श्रावक के लिए उक्त कार्य सर्वथा त्याज्य है |
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१४- सरदह तलाव - सोणिया कम्मे तलाव, नदी आदि की ज़मीन को कृषि योग्य बनाने के लिए कई लोग तलाब नदी आदि के पानी को सुखा देते हैं । श्रावक को ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस तरह पानी सुखाने से पानी में रहे हुए अनेकों जोवों का हिंसा होती 'है | अतः यह कर्म भी श्रावक के लिए सर्वथा त्याज्य है ।