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एकादश अध्याय
उपयोग नहीं करूंगा, उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत कहलाता है । .. ... संसार में अनन्त पदार्थ हैं। मनुष्य का जीवन इतना छोटा है कि
उन का उपभोग करने की बात तो दूर, वह सभी पदार्थों का नाम तक नहीं जानता। जिन थोड़े-से पदार्थों का नाम जानता है, वे भी पूरे-पूरे पदार्थ उसके उपभोग-परिभोग में नहीं आते । फिर भी पाश्रव का द्वार खुला रहता है, क्रिया लगती रहती है। अतः श्रावक के लिए यह ज़रूरी है कि जीवन के लिए अत्यावश्यक पदार्थों को रख कर,
शेष सभी पदार्थों के उपभोग-परिभोग का त्याग कर देना चाहिए। '. पदार्थ अनन्त हैं. उन सब का नामोल्लेख कर सकना कठिन ही नहीं,
असंभव है। अतः उन सब का.२६ बोलों में संग्रह किया गया है:: ..१-उल्लणिया-विहि-परिमाण- प्रातः शौचादि से निवृत्त हो कर मुंह-हाथ धोए जाते हैं, अतः उन्हें पोंछने के लिए रखे जाने वाले. वस्त्र को उल्लणिया-विहि कहते हैं । आज की भाषा में हम रूमाल, टावल Towel आदि कहते है। . ....:२-दन्तवण-विहि-- दान्त साफ करने के लिए दातौन या मंजन
की मर्यादा करना। ..... ३-फल-विहि- मस्तिष्क को स्वच्छ और शीतल रखने के लिए ... प्रांवले, त्रिफले आदि फलों के चूर्ण की मर्यादा करना । पूर्व के युग में
ऐसे फलों का मस्तक धोने के लिए उपयोग किया जाता था, जिस से
वाल भी साफ हो जाएं और दिमाग़ में ताज़गी का अनुभव हो । आज - उस विधि का प्रायः लोप हो चुका है, उन का स्थान साबुन, सोडा
एवं पाउडरों ने ले लिया है। . .. . ... ... .. . .. .. ४-अभ्यंगण-विहि- त्वचा सम्बन्धी विकारों एवं त्वचा की .. रूक्षता को दूर करने के लिए तैल आदि का मालिश करना। . . . . .: . ५-उवटन-विहि- शरीर के मल को दूर करने के लिए उबटन