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प्रश्नों के उत्तर
: ५०२. जाते हैं, जिससे साधारण लोगों को न पूरा भोजन मिल पाता है और न तन ढकने के लिए पूरा वस्त्र । इसी तरह व्यापारी भी जिस दिशा , में निकलते हैं, वहां के सीधे-सादे, भोले-भाले व्यक्तियों का शोषण करके अपना घर भरने का प्रयत्न करते हैं। इस तरह. राजा या राजनेता तथा व्यापारी जिधर निकलते हैं, एक तरह से तबाही कर देते हैं। इस लिए श्रावक के लिए यह जरूरी है कि वह अपने कार्य-क्षेत्र की मर्यादा करके जीवन विताए। जिस से वह मर्यादा के बाहर के क्षेत्र के पाश्रव से सहज ही बच सके । इस व्रत को निर्दोष रखने के लिए श्रावक को पांच बातों से सदा दूर रहना चाहिए - .:.:.:, . . १-उर्ध्व दिशा का परिमाण किया है, उसका उल्लंघन करना।
२-नीची दिशा के लिए जितने क्षेत्र की मर्यादा की है, उसके आगे बढ़ना ।.. . . . . . . . . . . . . . . . . . . .:.; . : ३-तिर्यक दिशा में गमनागमन का जो क्षेत्र : निश्चित किया है. उस अक्षांश रेखा को लांघना ।
. ४-एक दिशा की सोमा को कम करके उस कम की गई संख्या को दसरी दिशा की सोमा. में मिलाकर उस - सीमा को विस्तृत करना। ....५-क्षेत्र-सीमा की समाप्ति का संशय या भ्रान्ति होने पर उसका
निर्णय किए बिना आगे कदम बढ़ाना । - उपभोग-परिभोग-परिमाण व्रत
, इस व्रत का नाम उपभोग-परिभोग परिमाण व्रत है। एक बार काम आने वाले पदार्थों को उपभोग सामग्री कहते हैं और जो पदार्थ पुनः पुनः या कई बार भोगोपभोग के काम में लाए जा सकें, उन्हें . परिभोग कहते हैं । उक्त उपभोग-परिभोग में आने वाले समस्त पदार्थों को मर्यादा करना कि मैं इतने पदार्थों से अधिक पदार्थों का