________________
४०३
दशम अध्याय.
पाश्चात्य देश उस 'प्रोर कुछ को ही भूले हुए हैं । वे शरीर-पोषण के लिएतो रात-दिन दौड़ते हैं, नई-नई योजनाएं तैयार करते हैं, परन्तु इस 'और कुछ' अर्थात् आत्मा के लिए कभी एक मिण्ट भी नहीं सोचते । यही कारण है कि उनका भौतिक विकास श्रात्म विकास शून्य होने से आज विश्व के लिए खतरे का कारण बन गया है ।
.
भौतिक उन्नति एवं एश्वर्य संपन्नता भी बाहर से अधिक दिखाई. देती है । परन्तु प्रान्तरिक स्थिति उतनी उन्नत नहीं है, जितनी वाहर प्रापेगण्डे में दिखाई जाती है । डूंगर-पहाड़ सदा दूर से ही सुहावने लगते हैं, यह कहावत उन पर बिल्कुल चरितार्थ होती है । लोग कहते हैं कि अमरीका में सभी धनवान हैं, परन्तु यथार्थ में ऐसी बात नहीं है। वहां गरीव भी हैं । धनवान दिखाई देने वालों में भी सभी की प्रान्त-, रिक स्थिति अच्छी नहीं है । यह ठीक है कि वहां के लोगों का वाहये: रहन-सहन का स्टैंडर्ड ज़रा ऊंचा है, वे भोग-विलास में अधिक इवे हुए हैं । इसलिए बाहरी दिखावा ऐश्वर्य की संपन्नता को लिए हुए है । आन्तरिक स्थिति यह है कि विवाह होते ही दम्पती को घर से पृथक कर दिया जाता है । रहने के लिए एक मकान मिल जाता है । मासिक या वार्षिक किश्तों के आधार पर उन्हें मोटर, रेडियोसैट आदि अन्य सुख-साधन एवं ऐशोराम के साधन उधार मिल जाते हैं, होटल में खाना खाते हैं । कुछ महीने या वर्ष तो आराम से गुज़र जाते हैं, पर: थोड़े दिनों के बाद जब कर्ज़ का भूत सिर पर आ कर खड़ा होता है, तो उनके होश - हवास गुम हो जाते हैं, सारे मौज-मजे एवं ऐशोराम को भूल जाते हैं और फिर रात-दिन काम में लगना पड़ता है । पतिपत्नी दोनों नौकरी की तलाश करते हैं और नौकरी भी एक जगह नहीं कई जगह करते हैं और नियमित समय से भी अधिक काम करके