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प्रश्नों के उत्तर
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५-काम-भोग की तीव्र आसक्ति रखना। वासना को अधिक . बढ़ाने के लिए कामोत्तेजक औषधों एवं प्रकाम रसों तथा प्रकाम भोजन का सेवन करना तथा अमर्यादित रूप से विषय-भोग भोगना । : . इस तरह श्रावक एवं श्राविका को उन सब साधनों का परित्याग कर देना चाहिए, जिनसे जीवन में विषय-वासना बढ़ती है, विकारों में अभिवृद्धि होती है। . .... .. . ... ........
mmmninuviniamainonnant दूसरे की सन्तानों का स्नेहादि के लिए परिणायन--विवाह करवाने को परविवाह-करणे' कहते हैं। स्वदार-सन्तोषिणों हि न युक्तं परेषां विवाहाऽऽदिकरणेन मैथुननियोगोऽनर्थको,विशिष्ट-विरति-युक्तत्वादित्येवमनाकलयतः परार्थकरणोद्यततयाऽतिचारोऽयमिति, अर्थात् स्वदार सन्तोषनत वाले व्यक्ति को दूसरे के विवाहादि असंयम-प्रोत्साहक कार्य करने से अतिचार लगता है। क्यों- . कि वह विशिष्ट व्रतधारी है, एतदर्थ उसके लिए ऐसा कार्य करना दोष का - . कारण है।' . . (राजेन्द्र कोष भाग ५, पृष्ठ ५४८)
व्याकरण की दृष्टि से भी यह अर्थ गलत है,ऐसी बात नहीं है । शाब्दिक .: . दृष्टि से भले ही यह अर्थ सही है, परन्तु व्रत स्वीकार करने की दृष्टि से यह - - अर्थ ठीक नहीं बैठता । क्योंकि चौथा व्रत एक करण और एक.योग से स्वीकार ...
किया जाता है । अर्थात् त्याग करने वाला व्यक्ति शरीर से विषय भोग सेवन : . करने का प्रत्यख्यान करता है। उसने मन और वचन से अभी विषय:भोग का "त्यांग नहीं किया है और मन, वचन एवं शरीर से वैषयिक सबध करवाने एवं
करने वाले का समर्थन करने का भी उसने त्याग नहीं किया है। अतः जब .. -:.: श्रावक के दूसरे व्यक्ति का विवाह-संबंध कराने रूप काम-भोग का त्याग ही..
नहीं है, तब उसे उसका अतिचार क्यों लगेगा, जिससे दूसरे का विवाह करवाने
की प्रवृत्ति पर प्रतिवन्ध लगाया जाए या ऐसा करने पर उसे व्रत में दोष - लगाने वाला माना जाए । अस्तु, 'परविवाहकरणे' का यह अर्थ करना उचित