________________
प्रश्नों के उत्तर
४९२..
धान्य, स्वर्ण-चांदी, घर-मकान-दुकान आदि द्रव्य परिग्रह है और उक्त पदार्थों में आसक्ति, ममता एवं मेरेपन का भाव रखना भाव . परिग्रह है । भाव परिग्रह के अभाव में द्रव्य परिग्रह विकास पथ में इतना बाधक नहीं है। द्रव्य परिग्रह चाहे अत्यल्प ही क्यों न हो, परन्तु यदि भाव परिग्रह-आसक्ति रही हुई है, पदार्थों की तृष्णा मन में .. अवशेष है तो वह दरिद्री होने पर भी परिग्रहों है। और द्रव्य परिग्रह :अत्यधिक है, यहां तक कि चक्रवर्ती का वैभवं उस के चरणों में लोट : रहा है, फिर उसके मन में उसके प्रति ममता-मूर्छा नहीं है, तृष्णाआकांक्षा नहीं है, तो वह व्यक्ति द्रव्य परिग्रह का ढेर लगा होने पर भी अल्प-परिग्रही कहा गया है। इस से स्पष्ट है कि परिग्रह आसक्ति तृष्णा एवं ममता में है, पदार्थों में नहीं- मुच्छा परिग्गहों वुत्तो। ... ...: परिग्रह- आसक्ति या तृष्णा को, सब से बड़ा पाप कहा है । ... क्रोध, प्रेम और स्नेह का नाश करता है, मान विनय-भक्ति का नाशकः . है और माया मित्रता का नाश करती है, परन्तु लोभ-तृष्णा या प्रा. . . संक्ति. सब गुणों का नाशक है; सारे दोषों की जड़ है । आज व्यक्तिव्यक्ति में, घर में, समाज में, राष्ट्र में एवं अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में होने ...
वाले संघर्ष, कलह-कदाग्रह का मूल कारण परिग्रह ही है। पूंजीपति...... . और श्रमजीवियों का, साम्राज्यवादी ताक़तों और कम्यूनिज्म का या. :: - यों कहिए अमेरिका और रूस का जो संघर्ष चल रहा है, दो ताक़ता ..
दृष्टि से श्रावक-श्राविका ने जिसे पत्नी या पति की मर्यादा रखी है उस का: . . ... वियोग हो जाने पर भी उसे पुनर्विवाह नहीं करना चाहिए। -:..', ..कोहो पीई पणासेइ, माणी विणय - नासणों। .............. .... माया मित्ताणि' नासेइ, लोहो सच-विणासंणो ।। - : : . .
"-दशर्वकालिक सूत्र ८, ३८ . .