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एकादश अध्याय " में जो तनाव बढ़ रहा है, इसके पीछे दोनों की अतृप्त तृष्णा-आकांक्षा
ही तो है । साम्राज्यवादी शक्तिये कम्यूनिजम से आगे बढ़ने के लिए अथवा यो कहिए सारे विश्व में साम्राज्यवादी व्यवस्था कायम करने के . लिए दौड़ लगा रही हैं, तो कम्यूनिस्ट सारे विश्व में अपना आधिपत्य ... जमाने का, सारे विश्व में कम्यूनिस्ट विचारधारा प्रसारित करने का स्वप्न ले रहे हैं । इस ख्यालो स्वप्न को पूरा करने के लिए दोनों ताक़तें रात-दिन एक दूसरे का नाश करने के उपाय सोचने एवं भयंकर से. भयंकर शस्त्रों का निर्माण करने में व्यस्त हैं। उन का मन मस्तिष्क रात-दिन अनिष्ट चितन से भरा रहता है । वे थोड़ी देर के लिए भी शांत मन से दूसरे के हित की बात नहीं सोच सकते । तृष्णा के जाल · में आवद्ध मानव सदा दूसरे का अहित ही सोचता है। कभी हित की ।
वात सोचता भी है तो अपने मतलब को पूरा करने के लिए या अपना स्वार्थ साधने के लिए,परन्तु मतलब के बिना वह दूसरे का हित करना तो .. दूर रहा है, उसके हित की बात सोच भी नहीं सकता। इस तरह परिग्रह मनुष्य को शांति से सांस नहीं लेने देता। जहां तृष्णा राक्षसी का नि- .. वास होता है वहां रात-दिन अशान्ति-चक्र चलता रहता है। यहां तक भाई-भाई का खून करने को तैयार रहता है । सक्षेप में कहूं तो,परिग्रह समस्त अनर्थों का जड़ है । तृष्णा के वशाभूत मानव सब पाप और . अपराध करता है । अस्तु, इन सारे दुष्कर्मों से बच कर शांत जीवन .. बिताने के लिए जैनधर्म ने अपरिग्रह की ओर बढ़ने की बात कही। . . यह नितान्त सत्य है कि गृहस्थ पूर्णतः परिग्रह का त्याग नहीं कर सकता । इस का कारण यह नहीं कि वह अपने एवं अपने परिवार का जीवन निर्वाह करने के लिए धन-धान्य आदि पदार्थों का संग्रह करता है। उपकरण एवं पदार्थ तो साधु भी स्वीकार करता है, फिर