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प्रश्नों के उत्तर .
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miraniwanin प्रदर्शन भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के बिल्कुल विपरीत है, वासना: को उत्तेजित करने वाला है और व्यभिचार में अभिवृद्धि करने वाला है। ऐसी प्रवृत्ति स्वास्थ्य एवं माध्यात्मिक दृष्टि से जीवन के लिए घातक है, पतंन के महागर्त में गिराने वाली है। इस पर प्रतिवन्ध लगाना समाज एवं राष्ट्र का सबसे पहला काम है। केवल धामिक दृष्टि से नहीं, सामाजिक, राष्ट्रीय व्यावहारिक एवं स्वास्थ्य का दृष्टि से भी विषय-वासना को उत्तेजित करने वाली सभी प्रवृत्तियं नुकसान
स्त्री वासना पूर्ति का साधन मात्र ही नहीं है। वह केवल नारा नहीं, माता भी है, बहिन भी है, पुत्री भी है। अतः उसे वासना को . साकार मूर्ति मान कर उसे अपने आमोद-प्रमोद का साधन मानना. एवं बनाना भारो भूल है । नारो वासना की गुड़िया नहीं, एक शक्तिः . है, ताकत है. वह शान्ति एवं सहिष्णुता को देवी है। उसे अतृप्त वा- : सना की दृष्टि से देखना या उसे अपनी शय्या को गेंद समझना अपने एवं राष्ट्र के जीवन को पतन के महागर्त में गिराना है और यह केवल नारी का अपमान नहीं, बल्कि माता एवं वहिन का घोर अपमान करना है.। अस्तु, भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता किसी भी हालत में अनियंत्रित वासना, भोगेच्छा एवं वैषयिक भावना को बढावा देने वाले साधनों-प्रसाधनों को स्वीकार नहीं कर सकती। वैदिक धर्म के ग्रेन्थों में भी केवल सन्तान प्राप्ति की इच्छा से दम्पती को विषय-वासना की ओर प्रवृत्त होने की बात कही है,न कि रात-दिन चौबीस घंटे
वासना के अनन्त सागर में डूबे रहने की । एक पति या एक पत्नी व्रत ... का यह अर्थ लगाना ग़लत है कि उसके साथ व्यक्ति रात-दिन वैषयिक
सुख में डूबा रहे । स्वपत्नी भी केवल भोग के लिए नहीं है । उसका ..साथ, सहयोग एवं सम्पर्क वासना को नियंत्रित करने के लिए. जीवन . .