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एकादश अध्याय ही औषध ली जाती है. पेट भरने के लिए नहीं। इसी तरह वैषयिक' प्रवृत्ति भी संयमित, मर्यादित एवं सन्तोषवृत्ति के साथ की जाए तो वह शारीरिक, वैचारिक एवं मानसिक स्वस्थता की दृष्टि एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष हानि का कारण नहीं बनती। :: :::: ... प्रस्तुत व्रत का नाम स्वदार सन्तोष व्रत है और श्राविका के लिए स्वपति सन्तोष व्रत । इसका तात्पर्य यह है कि श्राविक-श्राविका. . . विषय-भोगों को अच्छा नहीं समझते, वे उन्हें त्याज्य समझते हैं।
परन्तु वासना पर पूर्णत: विजय पा सकने में असमर्थ होने के कारण - दाम्पत्य जीवन में सन्तोषवृत्ति का अनुभव करते हैं । अपनी फैली हुई . ... अनन्त वासनामों को इधर-उधर से हटा कर दाम्पत्य जीवन में :
केन्द्रित कर लेते हैं। श्रावक-श्राविका स्वपत्नी एवं स्वपति को छोड़ कर जगत के अन्य सब स्त्री-पुरुषों को माता-बहिन एवं भाई के तुल्य समझते हैं।
“आज मनुष्य जीवन में संयम का महत्त्व बहुत कम रह गया है। बहुत से मनुष्य प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक ढंग से रात-दिन व्यभिचार ' के कामों में निमज्जित रहते हैं । पाश्चात्य देशों में विषय-भोगों का... .' सेवन करना जीवन का महान उद्देश्य माना गया है और यही कारणं
हैं कि वहां बड़े-बड़े क्लबों में स्त्री-पुरुष के कई जोड़े विषय-वासना का खुला प्रदर्शन करते हैं, राह चलते, वाजारों में, रेलों में एवं अन्य सब खुले स्थानों में पुरुष द्वारा स्त्री का चुम्बन करना बुरा नहीं . समझा जाता है । पाश्चात्य सभ्यता की यह हवा भारत में भी चल पड़ी है । चुम्बन प्रथा तो अभी तक भारत से दूर है, परन्तु बड़े-बड़े
क्लबों एवं होटलों में जोड़ों का नाच बिना किसी संकोच एवं रोक-. : टोक के साथ होता है। वहां किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं है, कोई भी. . स्त्री किसो भो पुरुष के साथ नाच सकती है । यह वासना का नंगा
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