________________
....
.
..
..दशम अध्याय...........
- ४१५
ixmmmmmmmmmmmmmmmm उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता ।जैसे- कोई गंगा-बहरा एवं हाथ- पैर आदि अंगोपांगों से रहित व्यक्ति पर शस्त्र का प्रहार किया जाए
तो उसे दुःख होगा या नहीं ? अवश्य होगा। इसी तरह अण्डे में स्थित जीव को भी तोड़ते समय दुःखानुभूति होती है। परन्तु वह उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता। क्योंकि अंगोपांग रहित मांस के डिवत. व्यक्ति की तरह उसके पास भी अपने दुःख को प्रकट करने के साधनों.. का अभाव है। इसी कारण वह दुःख-सुख को व्यक्त नहीं कर पाता । . परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि उसको उसका संवेदन ही नहीं होता। ... संवेदन तो होता ही है। .. :: .:.:::.:::. : .. .. प्रश्न- अण्डे को तोड़ते समय उसमें से कोई शरीर-धारी जीव तो नहीं निकलता केवल स्निग्ध, तरल पदार्थ ही निकलता है।
यदि वह सजीव है. तो उसे तोड़ने पर उसमें सजीव प्राणी की .. - स्पष्ट प्रतीति क्यों नहीं होती ?
उत्तर- आत्मा या-जीव का चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं होता। वह जिस . शरीर में रहता है, उसमें होने वाली हरकतों के द्वारा ही हम उसकी
सजीवता को जान-देख सकते हैं। यही कारण है कि अण्डे को तोड़ते ... समय उसमें से जीव दिखाई नहीं देता। क्योंकि वह चाक्षुष प्रत्यक्ष वाला नहीं है और उस अण्डे में अभी तक ऐसा शरीर नहीं बना है, जिसके
द्वारा उस प्राणी के जीव का स्पष्ट परिचयं मिल सके । अण्डे के रूप में .. उत्पन्न होने के कई दिनों बाद उस में स्थित तरल पदार्थ को जीव - अपना शरीर बनाता है। मनुष्य को भी यही स्थिति है, माता के गर्भ . में आते ही उसका शरीर नहीं बन जाता है । कई दिनों तक वह तरल ही रहता है उसके बाद वह अपने शरीर का ढांचा बनाता है।
.
.
.