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४६३ ... . एकादश अध्याय और सौभाग्य से वह जहर उसके लिए अमृत का काम करता है और डाक्टर को इस दवा से रोग-मुक्त होने की प्रसन्नता में वह उस समय अपने पास का सारा धन उसे दे देता है । इस तरह उसकी ज़िन्दगी बच जाने पर भी डाक्टर को पाप कर्म का बन्ध होता है और कानूनी दृष्टि से भी वह हत्या करने का अपराधी है। अतः हिंसा-अहिंसा या पाप-पुण्य किसी प्राणो के मरने और जीने पर आधारित नहीं है। देखना यह है कि उस समय उसको भावना का प्रवाह किस पोर प्रवहमान है। क्योंकि पाप और पुण्य का बन्ध भावना के अनुसार हा होता है।
रात्रि-भोजन ... मनुष्य के लिए रात्रि भोजन सभी दृष्टि से अहितकर है.। उससे अपने एवं दूसरे प्राणियों को जरा भी फायदा नहीं पहुंचता। क्योंकि रात्रि में हम किसी पदार्थ का ठीक तरह अवलोकन नहीं कर सकते । प्रतः उस भोजन के साथ जो कुछ भी मिला होता है, वह भी उदरस्थ कर जाते हैं । परिणाम स्वरूप अनेक प्राणियों के प्राणों का नाश करने के कारण बनते हैं तथा अनेक भयंकर व्याधियों के शिकार हो जाते हैं तथा कभीः प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। . . . . . ..: दिन और रात में यह अन्तर है कि दिन के तेज प्रकाश में बहुत से. जीव-जन्तु मकानों, खण्डहरों, कूमों एवं नालियों के अन्धेरे स्थानों में छिपे रहते हैं। सूर्य के प्रखर प्रकाश में बाहर निकलना उनके लिए कठिन है.। कुछ कीड़े बाहर आते भी हैं तो उन्हें हम सूर्य के उजाले में भली-भांति देख सकते हैं और उन्हें बचा भी सकते हैं । परन्तु रात्रि में पहले तो उड़ने वाले जीव-जन्तुः अधिक संख्या में घूमते हैं। सत ठडी होने से उन्हें ताप का भय नहीं रहता। इसलिए अपनी खुराक