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एकादश अध्यायः ... ४-वस्तु में मिलावट करना भी दोष है। कानून की दृष्टि से भी .. इसे अपराध माना गया है। वर्तमान युग में यह प्रवृत्ति काफी बढ़ गई
है। घी, दूध तेल प्रादि कोई भी पदार्थ मनुष्य को शुद्ध नहीं मिलता। · कुछ दिन हुए भारत सरकार के गृह मन्त्री गोविन्द वल्लभ पन्त ने
कहा था कि शुद्ध घी की बात तो छोड़िए, परन्तु हमें यह भी विश्वास नहीं होता कि बाजार में मिलने वाला डालडा घी भी शुद्ध है। यह आज के व्यापारियों की प्रामाणिकता पर करारा चपेटा है। व्यापारी . इसे पैसा कमाने की कला समझता है, परन्तु यह कला नहीं ग्राहक के एवं राष्ट्र के साथ विश्वासघात करना है; धोखा देना है। अस्तु मिलावट करने वाला केवल चोरी करने का अपराधी ही नहीं, प्रत्युत वि. श्वासघाती एवं देशद्रोही भी है। उसके इस जघन्य कार्य से देश की. जनता के स्वास्थ्य एवं मानसिक चिन्तन पर बुरा असर होता है । इस लिए श्रावक को इस महादोष से सदा दूर रहना चाहिए । .:
-राष्ट्र विरोधी कार्य करना भी दोष है । अति वृष्टि, अनावृष्टि या राजनैतिक गड़बड़ एवं संकट के समय वस्तुप्रों का मूल्य बढा देना तथा प्रान्तीय व्यवस्था को या राष्ट्रीय व्यवस्था को व्यवस्थित बनाए " रखने के लिए एक प्रांत का माल दूसरे प्रांत में लाने-लेजाने या अपने देश का माल दूसरे देश में लाने ले जाने पर : प्रतिवन्ध लगाया हुआ है। उस हालत में छुपकर या सीमा अधिकारियों को रिश्वत दे कर इधरउधर माल लाना तथा लेजाना भारी अपराव है। इसी तरह विना टिकट सफर करना, चुंगो से बचने के लिए इधर-उधर से छिप कर निकल जाना, इन्कमटॅक्स बचाने के लिए अलग खाते. रखना इत्यादि . ऐसे सभी कार्य अस्तेय व्रत के विरुद्ध हैं। ये सब चोरी के पाप का बढ़ाने वाले हैं। अतः श्रावक को इन सव दोषों से बच कर रहना