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प्रश्नों के उत्तर
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वैरिस्टर एवं डाक्टर भी चोरों की श्रेणी में गिने गए हैं।
वे लेखक एवं कवि जो दूसरे लेखकों एवं कवियों के विचारों को अपने नाम से छपवाते हैं, उनके लेखों एवं कविताओं में थोड़ा-बहुत शब्दों का या शीर्षकों का हेर-फेर करके उसे अपने नाम से प्रकाशित करने का दुःसाहस करते हैं, वे भी चोर हैं। . .
ईस तरह किसी भी व्यक्ति के धन-धान्य प्रादि पदार्थ, विचार, समय, शक्ति एवं श्रम का अपहरण करना, उन पर अपना अधिकार जमाना चोरी है । श्रावक को इस पाप कर्म से सदा दूर रहना चाहिए ' और जीवन में सदा सावधान हो कर चलना चाहिए। . . .
ब्रह्मचर्य प्रणव्रत विषय-वासना जीवन को पतनोन्मुख बनाती है। इस से शारीरिक शक्ति, वैचारिक सहिष्णुता एवं मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है। और वासना के आवरण में प्रात्म तेज भी दव जाता है, मन्द पड़ जाता है। प्रत: साधक को इन्द्रिय-जन्य विषय-भोगों से सदा निरत रहना
चाहिए। जैनधर्म के विचारकों ने मैथुन क्रिया को सदोष माना है। - प्रथम तो यह मोहजन्य है और मोह एवं आसक्ति को बढ़ाने वालो ।
है। यह ठीक है कि उक्त प्रवृत्ति के समय क्षणिक आनन्द एवं शांति का अनुभव होता है, परन्तु इससे जीवन में शान्ति मिलती हो. ऐसो बात नहीं है। विषय-भोगों को प्रोर जितनी अधिक प्रवृत्ति होगी,
वासना की आग भी उतनी ही तेज होगी । काम-भोग से या मैथन .... क्रिया से वासना को शान्त करने की प्रक्रिया ठोक वैसी होगी जैसे कि
पैट्रोल छिड़क कर प्रज्वलित आग को बुझाने के लिए की जाए। यह ... केवल तर्क एवं उपदेश की बात नहीं है, हमारी अनुभूति की प्रयोग
शाला में हम देख चुके हैं कि भोगों से काम-विकार एवं वासना की
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