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प्रश्नों के उत्तर
चाहिए ? .. उत्तर- यह तर्क केवल तर्क मात्र है। अत्यधिक ठण्डे प्रदेशों में भले . ही उष्ण प्रदेशों में उत्पन्न होने वाले बीमारी के कीटाणु उत्पन्न न.. होते हों, परन्तुं इससे यह कहना या समझना भारी भूल होगी कि उक्त प्रदेश में या उक्त वातावरण में जीव-जन्तु उत्पन्न ही नहीं होते। वीमारी के कीटाणुओं और जीव-जन्तुओं में बड़ा अंतर होता है। और : यह स्पष्ट समझ में आने वाली बात है कि दुनिया का कोई भी भाग. जीव-जन्तुओं से खाली नहीं हैं। उष्ण प्रदेशों में उसकी जलवायु के किस्म के जन्तु होते हैं, तो शीत प्रदेशों में वहां की हवा को सहने . वाले जन्तु होते हैं, परन्तु जन्तु विहीन कोई भी प्रदेश हो,ऐसा देखनेसुनने में नहीं पाया। रही बात प्रकाश की, उसके विषय में हम पहले ही बता चुके हैं कि कृत्रिम प्रकाश सूर्य के प्रकाश का मुकाबला नहीं कर सकता । विद्युत का प्रकाश-भले ही वह ठण्डा हो या तापयुक्त उससे जीवों के आवागमन में कोई अन्तर नहीं पड़ता। तापयुक्त . प्रकाश की अपेक्षा ठण्डे प्रकाश का मांखों की रोशनी पर बुरा असर कम होता है। परन्तु उस से जीवों की गति रुकती हो ऐसी बात नहीं हैं । अतः उक्त प्रदेश में भी रात्रि-भोजन करना हिंसा एवं पापजनक • कार्य ही है। ...
... ....... .. ..: जैनधर्म के अतिरिक्त जैनेंतर धर्मों में भी रात्रि-भोजन को .. दोष-युक्त माना है । कूर्म पुराण आदि पुराणों एवं अन्य धर्म ग्रन्यों . .
में रात्रि-भोजन का निषेध किया गया है। पाज के युगपुरुष राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी रात्रि-भोजन को पच्छा नहीं समझते थे। करीबन ४० वर्ष की अवस्था से ले कर जीवन-पर्यंत वे रात्रि-भोजन के त्याग को दृढ़तापूर्वक पालन करते रहे। पाश्चात्य देशों में गए उस