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एकादश अध्याय
.:..: मा ब्र याद, सत्यमप्रियम् ।". ..
सत्यव्रत का परिपालन करने वाले व्यक्ति को पांच दोषों से सदा बच कर रहना चाहिए। उक्त दोष ये हैं- १-दूसरों पर झूठा आरोप लगाना, २-किसी के गुप्त रहस्य को प्रकट करना, ३-पत्नी या पति आदि विश्वस्त साथी के साथ विश्वास-घात करना, ४-किसी भी व्यक्ति को बुरी या झूठी सलाह देना और ५-झूठा दस्तावेज़ या जाली खत तैयार करना। . : ...... आत्मा का स्वभाव सत्यमय है। यही कारण है कि असत्य का . व्यवहार करते समय भी सत्य उसके सामने साकार हो उठता है.। . परन्तु मोहजन्य. विकारों के वशीभूत हो कर मनुष्य सत्य को झुठला कर असत्य की ओर प्रवृत्त होता है। यों असत्य भाषण के अनेक कारण हो सकते हैं, फिर भी मोटे तौर पर उसके १४ कारण बताए गए हैं । वे निम्न हैं:- . . . . . . . . .
१-क्रोध- क्रोध में मनुष्य पागल हो जाता है। आवेश के समय उसे उचित-अनुचित, सत्य-असत्य का. ज़रा भी. विवेक नहीं रहता। इसलिए आवेश, गुस्से एवं क्रोध में बोली जाने वाली भाषा प्रायः प्रसत्य होती है।..
२-मान- अहंकार के वश हो कर भी मनुष्य झूठ बोलता है। जब मानव के मस्तिष्क पर अपनी महानता या अहं--भाव का भूत सबार होता है, उस समय वह सत्य-झूठ को नहीं देखता किन्तु अपनी विशेषता को प्रकट करने में व्यस्त रहता है। अतः अभिमान के स्वर में बोली जाने वाली भाषा प्रायः असत्य होती है । ... ... ... . .: .. ३.कपट- दूसरे व्यक्ति को छलने के लिए झूठ का सहारा लिया जाता है।