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प्रश्नों के उत्तर
४७८ से अर्थात मन, वचन और शरीर से चोरी करने और दूसरे व्यक्ति से चोरी करवाने या चोर को चोरी के लिए प्रेरित करने का त्याग करता
अहिंसा की तरह चौर्य कर्म भी दो तरह का है- १-सूक्ष्म और २-स्थूल । कल्पना करो,आप बाज़ार में एक किराने की दुकान पर गए और दुकानदार से विना पूछे गुड़ की डली उठा कर मुंह में रख लो। इसी तरह मार्ग में चलते हुए तृण या कंकर आदि उठा लिया । जैन धर्म उक्त प्रवृत्ति को चोरो मानता है। परन्तु यह सूक्ष्म चोरी है । इसे दुनिया चोरी नहीं मानती और न इससे दूसरे का विशेष नुकसान ही होता है । साधु के लिए ऐसे कार्य से भी बचने का आदेश है। परन्तु गृहस्थ के लिए स्थूल-मोटी चोरी से बचने की बात कही है, जिससे उसे एवं सामने वाले व्यक्ति को संकल्प-विकल्प एवं प्रार्त तथा
रौद्र ध्यान में डूबना न पड़े, जिस से लोग उसे चोर कह कर उसका तिरस्कार न करें तथा शासन उसे दण्डित न करे। इस तरह सेंध लगा कर, ताला तोड़ कर, जेब काट कर, डाका डाल कर दूसरे के पदार्थ को अपने अधिकार में लेना स्थूल चोरी है और यह कर्म श्रावक के लिए त्याज्य है। ... .. .. ... . .. ... ... ... ..
. . . मनुष्य को अपनी आवश्यकताएं सदा अपने पुरुषार्थ से प्राप्त ..हुए साधनों से पूरी करनी चाहिएं । यदि कभी दूसरे से किसी पदार्थ ... को प्राप्त करने की आवश्यकता महसूस हो तो उसे मांग कर पूरो
करनी चाहिए। एक दूसरे का सहयोग लेना तथा दूसरे को सहयोग देना बुरा नहीं है । परन्तु लुक-छिप कर या बल प्रयोग से दूसरे के पदार्थों पर अधिकार जमान । बुरा है। यह कर्म व्यावहारिक एवं प्राध्यात्मिक दोनों दृष्टि से निषिद्ध है । विचारकों ने धन को इग्यारहवां