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'प्रश्नों के उत्तर
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विश्वस्त व्यक्ति समझ कर अपना जेवर या अन्य कीमती सामान कुछ समय के लिए उसके पास रखना न्यास कहलाता है । उक्त सामग्री को वापस मांगने पर इन्कार कर जाना या दूसरे की धरोहर को दवाने के लिए भाषा का छल करना झूठ है। इस तरह के व्यवहार से सामने वाले व्यक्ति के मन को कभी इतना गहरा आघात लगता है कि हार्ट फेल तक की घटनाएं घट जाती हैं । अतः श्रावक को ऐसी भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जिससे दूसरे के धन-सम्पति का थोड़ा-सा हिस्सा भी अपनी ओर रहता हो ।
५ साक्षि-संबंधी झूठी गवाही देना भी श्रावक के लिए निषेध है। श्रावक का कर्त्तव्य है कि वह प्रत्येक मामले को घर में ही सुलझाने का प्रयत्न करे। यदि कोई व्यक्ति उसकी बात नहीं मान रहा है और न्यायालय में जाता या अपना मामला किसी पंच के हाथ सौंपता है. और उस में श्रावक को गवाह देना है तो वह विना भिभक के यथार्थ बात कहे । अपने स्वार्थ को साधने या पैसा कमाने की दृष्टि से झूठ का श्राश्रय न लेवे ।
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इस तरह श्रावक दो करण तीन योग से स्थूल झूठ का त्याग करता है । अपने मन, वचन और शरीर से न स्वयं झऊ बोलता है और न दूसरे को झूठ बोलने की प्रेरणा करता है। वह सदा सत्य भाषा का व्यवहार करता है । उसमें भी माधुर्य एवं दूसरे के हित का ख्याल रखता है । वह ऐसा कटु सत्य भी नहीं बोलता जिस से किसी के घर में परस्पर कलह-कंदाग्रह या मारपीट हो जाए। वस्तुतः सत्यं वही है, जो हितकारी, कल्याणकारी, मधुर और प्रिय हो । नीतिकारों ने भी कहा है
"सत्यं ब्रूयात्, प्रियं न यात्,