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एकादश अध्याय
में बहुत-से कीड़े तो बाहर निकल नहीं पाते और कुछ बाहर आने वाले कीड़े जीचित- नहीं रह पाते । यह बात आज के वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित कर दी है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से सूर्य का प्रकाश सर्वोत्तम है। रात्रि समय उड़ने वाले कीट-पतंगे अधिक होते हैं और जब कृत्रिम प्रकाश-दीपक, लम्प या बिजली का कर लिया जाता है, तब तो उन की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। जैसे शक्कर पर चींटियों एवं मक्खियों का जमघट लग जाता है, वैसे ही कृत्रिम प्रकाश पर कीट पतंगों का जमाव होने लगता है और इधर-उधर उड़ते हुए बेचारे खाद्य पदार्थों में गिर कर मनुष्य के पेट में पहुंच जाते हैं। कभी-कभी इस से भी अधिक दुर्घटनाएं घटित हो जाती है। जहां कीट-पतंगों का आधिक्य होता है, वहां छिपकली भी आ पहुंचती है। एक समय एक हलवाई रवड़ी बना रहा था। कड़ाहे के ऊपर छत पर कीट-पतंगों का शिकार करती हुई छिपकली इधर-उधर दौड़ लगा रही थी। दुर्भाग्य से छोटे मोटे जन्तुओं का शिकार करते-करते वह स्वयं हलवाई केकड़ाहे का शिकार बन गई। अचानक उसके पैर छत से छूट गए और वह रबड़ी के कड़ाहे में गिर पड़ी और उसके साथ पक गई। और वह रबड़ी जिस-किसो व्यक्ति ने खाई. उसकी हालत चित्ताजनक हो गई, उसे डाक्टर की शरण में जाना पड़ा । फिर निरीक्षण करने पर मालूम पड़ा कि रबड़ी. में छिपकली गिर पड़ी थी। इस तरह: रात्रि-भोजन अहिंसा की दृष्टि एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उचित नहीं है । .. ....... :::::.: .... प्रश्न- दक्षिण भ्र-व आदि अत्यधिक ठण्डे देशों में-जहाँ जन्तः नहीं होते, वहां विद्युत का ठण्डा प्रकाश करके भोजन किया जाए तो उस में अहिंसा की दृष्टि से कोई आपत्ति नहीं होनी