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प्रश्नों के उत्तर
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उसके जीवन में विवेक की आंख खुली है और त्याग की ओर लक्ष्य : है। इसलिए गृहस्थ जीवन में साधक आत्म विकास के पथ पर बढ़. सकता है। परन्तु अभी उसके जीवन पूर्णता न होने के कारण उसकी साधना भी प्रांशिक है और इसी अपेक्षा से उसके व्रतों को अणुव्रत : कहते हैं और अणुव्रत पांच होते हैं-१-अहिंसा, २-सत्य, ३-अस्तेय . ४-स्वदार संतोष और ५-परिग्रह परिमाण व्रत ।
अहिंसा अणुव्रत ...... आगमों में हिंसा के चार प्रकार बताए हैं-१-संकल्पी हिंसा, २-..
प्रारंभी हिंसा, ३-उद्योगी हिंसा और ४-विरोधी हिंसा । जान-बूझकर बिना किसी अपेक्षा से इरादे पूर्वक प्राणियों के प्राणों का नाश करना
संकल्पी हिंसा है। चौंके-चूल्हे नादि के श्यावश्यक कार्यों में होने वाली . हिंसा को आरंभी हिंसा कहते हैं । खेती-व्यापार एवं अन्य उद्योगों में
होने वाली हिंसा को उद्योगी हिंसा कहते हैं । अपने देश, परिवार या व्यक्तिगत जीवन में किये गए आक्रमण से देश, परिवार एवं अपनी रक्षा करने हेतु या अन्याय एवं अत्याचार तथा अनीति का प्रतिकार करने के लिए लड़े गए युद्ध में जो हिंसा होती है, उसे विरोधी हिंसा कहते हैं। साधु चारों प्रकार की हिंसा का त्यागी होता है। क्योंकि वह पारिवारिक एवं राष्ट्रीय समस्याओं से मुक्त होता है। इसलिए उसे खाना, मकान, वस्त्रादि बनाने या बनवाने की चिन्ता नहीं रहती और न उन साधनों को प्राप्त करने के लिए वाणिज्य या उद्योगधन्धा करने की ही आवश्यकता पड़ती है। और उसके कोई शत्रु भी नहीं होता है। क्योंकि उसका किसी भी पदार्थ पर- यहां तक कि अपने उपकरण एवं शरीर पर भी अपनत्व या ममत्व भाव नहीं होता। इसलिए अपने प्राणों का नाश करने वाले व्यक्ति को भी वह अपना