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प्रश्नों के उत्तर खूखार बन जायगा । अस्तु, सिंह, सांप;विच्छ आदि को विनाकारण । मारने की बात अहिंसक सोच ही नहीं सकता। वह सब प्राणियों का बचाता हुआ चलता है । कभी भूल से किसी विच्छ यादि पर पैर प्रा गया और उस ने काट खाया या काटने की संभावना दिखाई दी तो वह उसे धीरे से किसी साधन से पकड़ कर एकांत स्थान में छोड़ देगा. न कि उसका बदला उस के प्राणों को ले कर लेगा। इसी तरह यदि . सिंह भी उस पर आक्रमण कर दे तो उस हालत में वह अपना बचाव करने के लिए खुला है । ऐसी स्थिति में यदि सामने वाले प्राणी का . प्राण-हानि भी हो जाती है, तब भी वह अपने व्रत से नहीं गिरता। .. इस तरह यह स्पष्ट हो गया कि सिंह, सर्प,बिच्छू आदि को मारना या संताना न्याय संगत नहीं है। उन की सुरक्षा करना भी मनुष्य का , कर्तव्य है।. .
.. ...... ..: प्रश्न- गाय, मैंस आदि जानवरों को एक स्थान पर खड़ा कर देते हैं और फिर उन के स्तन दवा कर दूध निकाल लेते हैं। इसी तरह-घोड़ा, ऊंट-आदिः पर-सवारी करके-या सामान लाद किराउन को कष्ट पहुंचायाजाता है। क्या यह हिंसा नहीं है ? उत्तर- जीवन सहयोग पर आश्रित हैं। प्रत्येक प्राणी दूसरे प्राणियों ,
के सहयोग सेवा और उपकार पर ही जीवित रहता है। जीव का - कार्य की दृष्टि से यही लक्षण है कि वह एक दूसरे का सहयोगी साथी ..
बन कर रहे। प्राचार्यः उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र में कहााहै : "परस्परोपग्रहो, 'जीवानाम् ।": अस्तु, सिद्धांत को बाता है कि एकदूसरे प्राणीको सहयोग लिए बिना किसी भी प्राणी का जीवन चल · . नहीं सकता। वैदिक परम्परा में इस बात को इन शब्दों में कहा गया है- “जीवो जीवस्य-जीवनमः।":अर्थात्: जीव ही जीव का जीवन