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काट-छांट नहीं करता: ।
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४न्त्रइमारे-किसी भी प्राणी की शारीरिक शक्ति से उस पर प्रधिक बोझ डालना भी हिंसा है । कानून की दृष्टि से भी वैल गाड़ी, वांगे, घोड़े, ऊंट ग्रादि जानवरों पर अधिक बोझ लादना अपराध है। कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति के लिए दण्ड की भी व्यवस्थाः है । फिर भी स्वार्थी व्यक्ति पैसा बचाने के लोभ में धर्म एवं कानून को तोड़ कर विचारे मूक, असहाय एवं पराधीन बने प्राणियों पर अधिक भार लाढने का क्रूर कर्म करते हुए नहीं हिचकचाते । परन्तु श्रावक ऐसा कार्य नहीं करता । वह पैसे की अपेक्षा दूसरे प्राणी की सुविधा को देखता है। वह न किसी भी पशु या मज़दूर पर अधिक वोझ लादता है और न अपने घर, दुकान या कारखाने में काम करने वाले मजदूर से उसकी शक्ति एवं समय से अधिक काम लेता है ।" ५ भत्त-पाण-विच्छेदे किसी भी प्राणी को समय पर भोजन नहीं देना भी हिंसा हैं। श्रावक सदा इस बात का ध्यान रखता है । इस तरह श्रावक उक्त पांचों दोषों का परित्याग करके अहिंसा अणुव्रत का परिपालन करता है ।
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एकादश अध्याय
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प्रश्न- व्यापार-वाणिज्य करने वाला व्यक्ति श्रावक बन सकती है, परन्तु राजा, सेनापति या सैनिक जैनत्व या श्रावकत्व को स्वीकार नहीं कर सकता ? क्योंकि उसे युद्ध श्रादि कार्यों में भाग लेना होता है और उक्त कार्य में 'प्राणियों का मनुष्यों का वध होना भी निश्चित है 1 अतः राजा, सैनिक या सेनापति
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श्रहिंसा व्रत का पालन कैसे कर सकता है
उत्तर- हम श्रभी देख चुके हैं कि श्रावक संकल्प पूर्वक हिसा करने