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दशम अध्याय १३-शक्ति का ह्रास होता है। १४-धर्म का विनाश होता है। ... .. १५-कार्य-शक्ति का नाश होता है और १६-धन का नुक्सान होता है। . . .
हितोपदेश में लिखा है कि मदिरा का सेवन करने से चित्त में भ्रांति उत्पन्न होती है, चित्त के भ्रान्त होने पर मनुष्य पापाचरण की मोर.प्रवृत्त होता है और पापाचरणं से अज्ञानी जीव दुर्गति को प्राप्त करता है। इसलिए मनुष्य को कभी मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। ...... . .... .
सिक्खों के धर्मशास्त्र में भी मदिरा का निषेध किया है। ग्रन्थों की भाषा में कहें तो - " जिसके पीने से बुद्धि नष्ट हो जाती है और हृदयस्थल में खलबली मच जाती है। इसके अतिरिक्त अपनेपराए का ज्ञान नहीं रहता और परमात्मा की ओर से उसे धक्के मिलते हैं। जिसका आस्वादन करने से प्रभु का स्मरण नहीं होता ।
और परलोक में दण्ड मिलता है। ऐसे झूठे निसार नशों का कभी भी सेवन नहीं करना चाहिए। ... "जित पीवे मति दूर होय बरल पवै नित्त प्राय । .. अपना पराया न पछाणइ खसम हु धक्के खाय ।।... .. जित पीते खसम विसरे दरगाह मिले. सजाय । ..
.. चित्त प्रान्तिर्जायते मद्यपानात्, भ्रान्ते चित्ते पापचर्यामुपैति । .. ...पापं कृत्वा दुर्गतिं यान्ति मूढाः,तस्मान्मद्य नव पेयं नैव पेयं ।।
-हितोपदेश