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प्रश्नों के उत्तर
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दिल को दुखाना है। इसी कारण चोरी को भी दुर्व्यवसन एवं पाप कहा है । यह मनुष्य को दुर्गति में ले जाती है। इसलिए मनुष्य को चोरी का परित्याग कर देना चाहिए। ... ... ... .
७. परस्त्रीगमन हमं यह पहले बता चुके हैं कि विषयभोग मानव को. पतन के महागर्त में गिरा देते हैं। इसलिए कामेच्छा या वासना पर नियंत्रण रखना ज़रूरी है। विवाह परम्परा का उद्भव इसी भावना को सामने रख कर हुआ कि मनुष्य अपनी उच्छृखल वासना को, भोगेच्छा को एक जगह केन्द्रित रख सकें । पुरुष और स्त्री की वैषयिक इच्छा यत्रतत्र-सर्वत्र दौड़ती न रहे, पति अपनी पत्नी में और पत्नी अपने पति में संतुष्ट रह सकें, इसलिए विवाह पद्धति को स्वीकार किया है । इस से जीवन व्यवस्थित बना रहता है। मनुष्य का मन शान्त रहता है। उसकी इच्छाएं, कामनाएं अनन्त आकाश में चक्र नहीं काटती । इसलिए महापुरुषों ने पुरुष और स्त्री को मर्यादा में स्थित रहने पर जोर दिया। अर्थात् पुरुष स्व पत्नी के अतिरिक्त संसार की सभी स्त्रियों को
चाहे वह विवाहित हों, अविवाहित हों. या विधवा हों- मां, बहन ___ और पुत्री के तुल्य समझे और स्त्री अपने पति के अतिरिक्त सभी
पुरुषों को पिता, भाई एवं पुत्रवत् समझे । और पति-पत्नी भी एक '. दूसरे के साथ सन्तोष का अनुभव करे, न कि वासना के कोड़े बने रहें। ... भारतीय-संस्कृति के विचारकों ने भोग-विलास पर नहीं, त्याग पर
ज़ोर दिया है। उन्होंने वासना को घटाने की बात कही है। भोग को
एक प्रकार का रोग माना है । अतः मनुष्य को उससे बचकर रहना . चाहिए। . . ...::. ' ..