________________
. .
४४०
.
...........www.
. ... :: वासना पर नियंत्रण रखने से जीवन में सदाचार का पुष्प विक
सित हो उठता है। उसकी मधुर एवं सुवासित पराग सारे संसार में महकने लगती है । वह जिस ओर से निकलता है उधर के वातावरण को शान्त एवं सौरभमय बना देता है। राह में बिछी हुई शूलें भी फूल के रूप में परिवर्तित हो जाती है । वीर अर्जुन और सेठ सुदर्शन का प्रकाशमान जीवन हमारे सामने । उर्वशी और अभया ने उन्हें अपने पथ से विचलित करने का भरसक प्रयत्न किया। पर वे महापुरुष उन्हें माता के रूप में ही देखते रहे और मां कह कर ही पुकारते रहे । इसी का मधुर परिणाम है कि सुदर्शन को दो गई शूली सिंहासन के रूप में बदल गई । इसी तरहं सीता की पवित्र भावना से अग्नि का जल बन गया तथा महासती सुभद्रा ने कच्चे धागे से छलनी वांधकर कुएं से पानी खींच निकाला। यह सारा शील का, सदाचार का ही प्रभाव था। तो जीवन का महत्त्व बनावशृगार में नहीं, शोल एवं
सदाचार से है। सदाचार के तेज के सामने सारे शृगार फीके प्रतीत : .....होते हैं । एक कवि ने ठीक ही कहा है-
....... " पतिव्रता फाटा लता, नहीं गले में पोत, .. भरी सभा में ऐसी दीपे, हीरां केरी जोत । पतिव्रता फाटा लता, धन जांका दीदार,
कालू कहे किस कोम का,वेश्या का श्रृंगार ॥" जिस पुरुष एवं स्त्री के चेहरे पर सदाचार का, शील का तेज चमक रहा है, उसे शृंगार की, केश संवारने की तथा क्रीम, पाउडर एवं तेल लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है । ये सारी आवश्यकताएं उसी को होती है, जिसके पास सदाचार का तेज नहीं है। जिसके जी.