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दशम अध्याय marwwwmarwanamurnwww.
, यही कारण है कि पुरुष को परस्त्री के साथ संभोग करने का • तथा स्त्री को परपुरुष के साथ संभोग करने का निषेध किया गया है।
प्रश्न हो सकता है कि वेश्यागमन का निषेध तो किया जा चुका है। फिर परस्त्रीगमन का अलग से निषेध क्यों किया गया? बात ठीक है वेश्यागमन में परस्त्रीगमन का भी समावेश हो सकता है। क्योंकि वेश्या भी विवाहित स्त्री से पर-अलग ही है । परन्तु सभी व्यक्ति इस बात को आसानी से नहीं समझ सकते । क्योंकि वेश्या के सिवाय जितनी भी स्त्रियें होती हैं, उन पर किसी न किसी व्यक्ति का अधि-- कार होता है, संबंध होता है। परन्तु वेश्या का किसी के साथ स्नेहसंबंध नहीं होता और न वह किसी के अधिकार में होती है। इसलिए दुष्मार्गगामी व्यक्ति यह रास्ता निकाल लेते हैं कि वेश्या परस्त्री नहीं है, क्योंकि उस पर किसी का अधिकार नहीं है । जो पैसा दें, वह उसी
की बन जाती है। इस कुतर्क को समाप्त करने के लिए महापुरुषों ने .. - वेश्यागमन और परस्त्रीगमन दोनों को अलग-अलग रखा। . .भोग-वासना को शल्यं माना गया है । और यह एक ऐसा जहर है कि इसे जितना अधिक सेवन किया जाता है, उतना ही अधिक फलता है। मनुष्य समझता है कि अधिक भोग भोगने से तृप्ति हो जाय
गी, परन्तु होता यह है कि वासना की आग और अधिक प्रज्वलित हो . उठती है। क्योंकि वासना मोह कर्म से उदित होती है और मोह कर्म . . मनुष्य को हमेशा प्रशान्त एवं अतृप्त बनाए रहता है। भोगों में
प्रासक्त व्यक्ति को कभी शान्ति नहीं मिलती। ... :: परस्त्रीगमन आध्यात्मिक एवं सामाजिक दोनों दृष्टियों से दोष.. मय है। इससे जीवन में अनैतिकता बढ़ती है, रात-दिन अशान्ति बनो .. रहती है, पात्म-चिन्तन में मन नहीं लगता। सामाजिक दृष्टि से देखें